कर्म का लेखा-जोखा अटल, फल अवश्य मिलेगा: प्रज्ञा सागर महाराज

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कोटा। जैनाचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज का 37वां चातुर्मास महावीर नगर प्रथम स्थित प्रज्ञालोक में जारी है। आचार्य प्रज्ञासागर ने मंगलवार को अपने चातुर्मास के प्रवचनों में कहा कि धर्मात्मा व्यक्ति मंदिर जाता है, पूजा करता है, अभिषेक करता है, फिर भी कभी-कभी उसे दुख का सामना करना पड़ता है।

वहीं, दुर्जन व्यक्ति पाप कर्मों में लिप्त होकर भी वैभव और सुख-संपदा का उपभोग करता दिखाई देता है। इसका कारण यह है कि पापी के पाप कर्मों का उदय अभी नहीं हुआ होता है। जबकि धर्मात्मा अपने संचित पाप-पुण्य को भोग रहा होता है।

उन्होंने कहा ईश्वर के दरबार में देर हो सकती है, लेकिन अंधेर नहीं। कर्म का फल आज नहीं तो कल अवश्य मिलेगा। गुरूदेव ने श्रोताओं से आह्वान किया कि जीवन में हमारा नाम आग लगाने वालों में नहीं, बल्कि बाग लगाने वालों में होना चाहिए।

भारतीय संस्कृति सदैव मैत्री और परोपकार का संदेश देती है। हम दूसरों को खिलाकर आनंद पाने वाले लोग हैं। भगवान को नैवेद्य चढ़ाकर हम यह प्रार्थना करते हैं कि क्षुला रोग समाप्त हो।

उन्होंने पौराणिक कथा का उदाहरण देते हुए युधिष्ठिर और दुर्वासा ऋषि की घटना सुनाई, जिसमें एक दाना चावल श्रीकृष्ण को अर्पित करने से समस्त ऋषियों का पेट भर गया। उन्होंने इसे प्रतीकात्मक रूप में समझाते हुए कहा कि जैसे हाथ या पैर में दर्द होने पर दवा पेट में खाकर दर्द दूर हो जाता है, वैसे ही भगवान को नैवेद्य चढ़ाना वास्तव में जरूरतमंद तक सहायता पहुंचाने का माध्यम है।

प्रज्ञा सागर महाराज ने पुण्य क्षेत्रों की महिमा पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि शिखरजी जैसे पावन स्थल पर अनेक मुनियों ने दीक्षा ग्रहण की है। ऐसे क्षेत्रों का आध्यात्मिक प्रभाव अद्वितीय होता है, जैसे हमारे नगर का मंदिर, घर या कार्यालयहर स्थान का अपना अलग आध्यात्मिक वातावरण होता है।