‘एआई’ भावनात्मक समझ और मानवीय निर्णय क्षमता का विकल्प नहीं हो सकती

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कोटा। ‘एआई’ यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रतिक्रिया दे सकता है, विश्लेषण कर सकता है और दिमाग की तरह प्रोसेस कर सकता है। परंतु यह मनुष्य की करुणा, भावनात्मक समझ और मानवीय निर्णय क्षमता का विकल्प नहीं बन सकता।

अतः विद्यार्थियों को चाहिए कि वे डिजिटल साधनों का विवेकपूर्ण उपयोग करते हुए पारंपरिक अध्ययन पद्धति, पुस्तकों के अध्ययन और कक्षा संवाद को कभी न छोड़ें। यह बात कोटा विश्वविद्यालय की प्रो. अनुकृति शर्मा ने की-नोट स्पीकर के रूप में पं. नवल किशोर शर्मा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय दौसा में आयोजित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में कही।

अनुकृति शर्मा ने अत्याधुनिक तकनीक और एआई के बढ़ते प्रयोग से उत्पन्न संभावित नकारात्मक प्रभावों की ओर सावधान किया। उन्होंने कहा कि एआई एक प्रभावी तकनीकी क्रांति जरूर है, लेकिन यह मानव के भाव, अनुभव और संवेदनशीलता का स्थान नहीं ले सकता।

अनुकृति शर्मा ने एआई के अनियंत्रित उपयोग पर शास्त्रों में बताए ‘अतिशय वर्जन’ के सिद्धांत का उदाहरण देते हुए कहा कि हमें स्वयं तय करना होगा कि एआई को जीवन में कहाँ तक स्थान देना है और किस क्षण उसे सीमित कर देना चाहिए।

उन्होंने विद्यार्थियों को सलाह दी कि अनावश्यक डिजिटल प्लेटफॉर्म से दूरी बनाएं। पढ़ने की आदत और विश्लेषण कौशल को विकसित करें। सोशल मीडिया या एआई से सिर्फ जानकारी लें, परंतु ज्ञान प्राप्ति के लिए पुस्तकें और शिक्षक का संवाद ही सर्वोपरि है।

शर्मा ने कहा कि आने वाले समय में एआई और डिजिटलाइजेशन और तेज़ी से विस्तार करेंगे, इसलिए युवाओं को अपने भीतर ऐसी नई स्किल्स विकसित करनी होंगी, जिन्हें कोई मशीन प्रतिस्थापित न कर सके।

पं. नवल किशोर शर्मा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,दौसा में वैश्विक अर्थव्यवस्था, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई), शिक्षा एवं पर्यावरणीय स्थिरता विषयक दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़ (हरियाणा) के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार उपस्थित रहे।

जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में जिला कलेक्टर देवेंद्र यादव तथा कोटा विश्वविद्यालय की प्रो. अनुकृति शर्मा ने की-नोट स्पीकर के रूप में संगोष्ठी को संबोधित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉलेज के प्राचार्य एवं संगोष्ठी संरक्षक प्रो. लाला राम मीणा ने की।