कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में चल रहे चातुर्मास के दौरान सोमवार को गणिनी प्रमुख आर्यिका विभाश्री माताजी ने तत्वार्थ सूत्र कक्षा में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि धर्म का वास्तविक संबंध आगम और संवेदन से है। धर्म का सार यही है कि हम जीवन की विपरीत परिस्थितियों में भी आत्मशुद्धि को बनाए रखें।
उन्होंने स्पष्ट किया कि विशुद्धि का अर्थ दूसरों के दोष न देखकर आत्मकल्याण पर ध्यान केंद्रित करना है। यही जीवन की सच्ची साधना है। जब मनुष्य अपने जीवन की विशुद्धि में स्थिर रहता है, तो उसके परिणामस्वरूप कषायों की तीव्रता समाप्त होती है और कर्मों की निवृत्ति होती है।
भक्तामर स्तोत्र के प्रवचन में गुरूमां ने कहा कि मनुष्य का आभामंडल उसकी संगति से प्रभावित होता है। यदि संगति गलत हो तो उसका नकारात्मक प्रभाव हमारे जीवन पर गहराई से पड़ता है। वहीं उत्तम संगति जीवन को पवित्र और शांत बनाती है।
गुरुदेव ने समझाया कि सरल, सच्चे और सद्गुणी व्यक्तियों की संगति ही जीवन में सही दिशा देती है। मंदिर का वातावरण और वहां का आभामंडल साधकों के मन पर विशेष प्रभाव डालता है। उन्होंने कहा कि भगवान का तेजस्वी आभामंडल प्रत्येक जीव को पवित्रता और आध्यात्मिक उत्थान की ओर प्रेरित करता है। अतः हमें अपने जीवन में सत्संग और शुद्ध वातावरण को स्थान देना चाहिए।

