आईसीएआर महानिदेशक डॉ. जाट ने जैविक कृषि अनुसंधान केंद्र का किया अवलोकन
कोटा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), नई दिल्ली के महानिदेशक डॉ. एमएल जाट ने शुक्रवार को कोटा जिले के जाखोड़ा स्थित गोयल ग्रामीण विकास संस्थान के श्रीरामशांताय जैविक कृषि अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र का दौरा किया। इस अवसर पर उन्होंने गौ-आधारित जैविक खेती से जुड़े विभिन्न अनुसंधान एवं विकास हेतु संचालित प्रयासों का अवलोकन किया।
केन्द्र पहुंचने पर किसानों द्वारा माल्यार्पण व दुपट्टा पहनाकर पारंपरिक तरीके से उनका स्वागत किया गया। इस दौरान उनके साथ डॉ. एकेजी नायक, उप महानिदेशक (एनआरएम), डॉ. सुनील कुमार शर्मा, एडीजी (मानव संसाधन प्रबंधन), आईसीएआर डॉ. अभय व्यास, कुलपति, कृषि विश्वविद्यालय, कोटा (राजस्थान) एवं संस्थान के अध्यक्ष ताराचंद गोयल भी उपस्थित रहे।
संस्थान के मुख्य प्रबंधक पवन टाक ने बताया कि आईसीएआर महानिदेशक डॉ. जाट को पूरे परिसर का भ्रमण करवाया गया। जिसमें यहां संचालित प्रमुख अनुसंधान कार्यों की विस्तृत जानकारी दी गई। जैसे भूमि में लाभकारी जीवाणुओं के संवर्धन हेतु देशी गाय का ताजा गोबर ‘संजीवनी’ के रूप में कारगर सिद्ध हुआ है।
75 किलोग्राम ताजा गोबर प्रति एकड़ सिंचाई के साथ उपयोग करने से जिन फसलों पर प्रयोग किया गया। उसका प्रत्यक्ष निरीक्षण एवं चर्चा की गई। इसी प्रकार, खड़ी फसल की बढ़वार हेतु देसी गाय के गोमूत्र (1.5 लीटर), चूना (जर्दा में प्रयुक्त दो ट्यूब) और 13.5 लीटर पानी से तैयार घोल का छिड़काव कर प्राप्त लाभकारी परिणामों की जानकारी दी गई।
अवलोकन के दौरान तीनों प्रयोगों को एक साथ जोड़कर एक बीघा (1620 वर्ग मीटर) भूमि में पांच सदस्यीय परिवार के लिए तैयार ‘पोषण वाटिका’ मॉडल की जानकारी दी गई, जिसमें अनाज, तिलहन, दलहन, फल, सब्जियां, औषधीय पौधे एवं चारे का उत्पादन एक ही स्थान पर किया जा रहा है, साथ ही एक गाय के पालन से यह मॉडल आत्मनिर्भरता की दिशा में अग्रसर है।
अनुसंधान एवं आधारभूत व्यवस्थाओं के निरीक्षण के उपरांत डॉ. जाट कृषक संवाद कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सम्मिलित हुए। इस कार्यक्रम में उन्होंने संस्थान द्वारा विकसित गो-आधारित कृषि पद्धति को अपनाकर सफल हुए किसानों से संवाद किया।
डॉ. जाट ने इस पद्धति को अपनाने वाले किसानों के अनुभव सुनकर प्रसन्नता जाहिर की और कहा कि, “ये देश की सबसे सरल एवं प्रभावी विधियां हैं, जो वैज्ञानिक, पोषक तत्वों एवं सूक्ष्म जीवाणुओं की दृष्टि से अत्यंत उपयोगी हैं। अन्य विधियों की तुलना में यह तकनीक अधिक किफायती और अभिनव है।
केंद्र के समग्र प्रयासों को देखकर आईसीएआर महानिदेशक डॉ. जाट ने कहा कि यहां पर प्राचीन गौ-आधारित जैविक खेती का नवीन तकनीकी समाधानों के साथ अद्भुत समन्वय देखा गया। यहां व्यवस्थित केफेटेरिया है। जहाँ कईं प्रकार से डेमोस्ट्रेशन उपलब्ध है।
किसान अपने हिसाब से उसका चयन कर सकता है। वैज्ञानिक व्यवस्था एवं खेती से बाजार तक की संपूर्ण योजना यहां क्रियान्वित है। यह केंद्र निश्चित ही देश में जैविक कृषि के लिए एक प्रेरणास्पद मॉडल है।
उन्होंने यह कहा कि यदि जैविक एवं प्राकृतिक खेती में इस केंद्र के प्रयासों के साथ उच्च तकनीकी का समायोजन तथा अन्य पारंपरिक विषयों को भी जोड़ा जाए, तो जैविक खेती के क्षेत्र में तीव्र गति से विकास संभव है और आधुनिक पीढ़ी भी इस दिशा में जुड़ सकेगी।
सरल कंपोस्ट खाद
इसके अतिरिक्त, परंपरागत रूप से संग्रहित 1 टन पशुजन्य एवं खेत-वनस्पति अपशिष्ट (जैसे कचरा, भूसा, फल-सब्जी के छिलके आदि) को जैविक कंपोस्ट में बदलने हेतु 2 किलोग्राम गुड़, 30 किलोग्राम ताजा गोबर और 30 लीटर छाछ को 150 लीटर पानी में घोलकर उपयोग करने से 500 किलोग्राम सरल कंपोस्ट तैयार करने की विधि का डेमो भी दिया गया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे ताराचंद गोयल, निदेशक गोयल ग्रामीण विकास संस्थान, कोटा ने संस्थान की स्थापना, उद्देश्य एवं आगामी कार्ययोजनाओं से सभी को अवगत करवाया। उन्होंने कहा कि यह प्रकल्प देशभर में गौ आधारित जैविक खेती के प्रसार हेतु प्रतिबद्ध है और इस दिशा में तेजी से कार्य कर रहा है।

