मुम्बई। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तुलना में थोक मंडी भाव 10-15 प्रतिशत नीचे रहने से सोयाबीन की खेती में इस बार किसानों का उत्साह एवं आकर्षण कुछ घटने की संभावना है जिससे राष्ट्रीय स्तर पर इसके कुल क्षेत्रफल में पिछले साल के मुकाबले करीब 5 प्रतिशत की गिरावट आने का अनुमान है
लेकिन मौसम एवं मानसून की हालत अनुकूल रहने पर फसल की औसत उपज दर में सुधार हो सकता है जिससे कुल उत्पादन पिछले साल के आसपास ही होने की उम्मीद है। यदि मौसम प्रतिकूल रहा तथा प्राकृतिक आपदाओं एवं कीड़ों-रोगों का प्रकोप बढ़ा तो सोयाबीन की पैदावार प्रभावित हो सकती है।
उद्योग विश्लेषकों के अनुसार यद्यपि अभी तक सोयाबीन के बिजाई क्षेत्र में ज्यादा उलट फेर नहीं हुआ है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि विभिन्न प्रमुख उत्पादक राज्यों में किसान सोयाबीन के बजाए मक्का, तुवर, मूंगफली एवं कपास जैसी फसलों की खेती पर ज्यादा ध्यान दे सकते हैं।
मक्का इस बार किसानों को ज्यादा आकर्षित कर सकता है क्योंकि इसकी मांग काफी मजबूत बनी हुई है और सरकार ने इसका एमएसपी 2225 रुपए प्रति क्विंटल से 175 रुपए बढ़ाकर 2400 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित कर दिया है।
इसी तरह तुवर का समर्थन मूल्य 8000 रुपए प्रति क्विंटल तथा लम्बे रेशेवाली कपास का एमएसपी 8110 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है।
इंदौर स्थित संस्था- सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) के अनुसार 2024 के खरीफ सीजन में सोयाबीन का घरेलू उत्पादन क्षेत्र 117.48 लाख हेक्टेयर दर्ज किया गया था जबकि चालू वर्ष के दौरान इसमें 5 प्रतिशत तक की कमी आ सकती है।
वैसे कृषि मंत्रालय का बिजाई क्षेत्र आंकड़ा पिछले साल सोपा के आंकड़े से बढ़ा था। एसोसिएशन के मुताबिक 30 जून 2025 तक देश में 43 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सोयाबीन की बिजाई पूरी हुई थी।

