कोटा। आचार्य कुंदकुंद स्वामी की देशना का उल्लेख करते हुए आचार्य प्रज्ञासागर जी महाराज ने बुधवार को अपने प्रवचन में कहा कि वर्तमान पंचमकाल दुख का समय है, जिसमें मनुष्य वास्तविक सुख प्राप्त नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि आज योग्यता, क्षमता और धन-सुविधाएं होने के बावजूद लोग धर्म से विमुख हो रहे हैं। इसका मूल कारण भावों की गिरावट है, जो पंचमकाल का स्वाभाविक प्रभाव है।
जैनाचार्य श्री प्रज्ञासागर जी महाराज ने स्पष्ट किया कि इस युग में मनुष्य मात्र इंद्रिय-सुख को ही वास्तविक सुख मान बैठा है, जबकि असली आनंद उससे परे है। यह समय केवल इंद्रिय सुख की प्राप्ति का है, परंतु सच्चा सुख इस युग में संभव नहीं है। यदि आप दान, पुण्य, धर्म और पूजा में रत रहते हैं तो यह अगले जन्म में सुख प्राप्ति का टिकट बुक कराने जैसा है।
उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे रेल, बस अथवा विमान यात्रा के लिए टिकट बुक कराने के बावजूद यदि यात्री समय पर नहीं पहुँचता तो टिकट व्यर्थ हो जाता है। वैसे ही पुण्य के साथ यदि पाप भी संचित हों तो पुण्य का फल नष्ट हो जाता है। इसलिए आवश्यक है कि हम पापों का त्याग करें और मन को शुद्ध करें।
गुरुदेव ने कहा कि पंचमकाल में सुख का केवल रिजर्वेशन संभव है। वास्तविक टिकट तभी मिलेगा जब मनुष्य पाँच पापों, बारह संयमों और मिथ्यात्व का त्याग कर मन को निर्मल बनाएगा। उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जैसे दही वाले बर्तन को साफ किए बिना उसमें दूध डालने पर वह फट जाता है, उसी प्रकार पाप रूपी दही से भरे मन में धर्म रूपी दूध तब तक नहीं ठहर सकता जब तक उसे पूर्णतः शुद्ध न किया जाए।

