कोटा। आर्यिका विभाश्री माताजी ने शनिवार को विज्ञान नगर जैन मंदिर से कुन्हाड़ी जैन मंदिर की ओर मंगल विहार किया। कई जैन धर्मावलम्बी उनके साथ विहार में रहे। उनके विहार मार्ग में श्रद्धालुओं ने पुष्प वर्षा कर स्वागत किया और पादपक्षालन किया।
अपने प्रवचन में गणिनी प्रमुख आर्यिका सिद्धिश्री माताजी ने तत्वार्थ सूत्र के छठे अध्याय की व्याख्या करते हुए कहा कि यदि व्यक्ति की श्रद्धा और मनोयोग स्थिर नहीं है, तो धार्मिक क्रियाओं का पूर्ण फल प्राप्त नहीं होता। श्रद्धा, विवेक और क्रियाशीलता, ये तीनों गुण जब एक साथ होते हैं तभी हिंसा आदि पाँच पापों का त्याग और धर्म साधना सार्थक होती है।
आर्यिका शुभश्री माताजी ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि देव, शास्त्र, गुरु और पंच परमेष्ठी ही वास्तविक शरण हैं। उन्होंने कहा कि प्रत्येक प्राणी के अपने परिणाम ही उसके सुख-दुख के कारण होते हैं।
संवलेश परिणामों से दुख प्राप्त होता है, जबकि धार्मिक क्रियाओं से मनुष्य सुख का अनुभव करता है। धर्म का जीवन में अत्यंत महत्व है। यह न केवल वर्तमान को संवारता है, बल्कि परलोक को भी सुखमय बनाता है। चातुर्मास समिति के कार्याध्यक्ष मनोज जैसवाल ने बताया कि कार्यक्रम में बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित रहे।

