आर्यिका विभाश्री ने नरक की स्थितियों व पारिवारिक मूल्यों पर दिया प्रवचन

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कोटा। विज्ञान नगर स्थित दिगंबर जैन मंदिर में गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी एवं विनयश्री माताजी (ससंघ) का चातुर्मास इन दिनों आध्यात्मिक प्रभाव के साथ श्रद्धा और ज्ञान का केंद्र बना हुआ है। चातुर्मास में 13 पिच्छियों सहित चल रहा यह धार्मिक अनुष्ठान समाज जनों के लिए आत्मकल्याण का अवसर बन रहा है।

महामंत्री अनिल जैन ठौरा ने बताया कि चातुर्मास के अंतर्गत चल रही तत्त्वार्थ सूत्र कक्षा में आर्यिका विभाश्री माताजी ने विशेष रूप से नरक में जीवों की स्थिति, दुःख की प्रकृति और वैर स्मरण जैसे विषयों पर शास्त्रार्थ किया।

माताजी ने समझाया कि पाप के घोर परिणामस्वरूप नरक में जन्मे जीवों को न केवल अपने कर्मों से उपजे दुःख झेलने पड़ते हैं, बल्कि पहले तीन नरकों तक असुरकुमार देव उन्हें पुराने वैर स्मरण कर यातनाएं भी देते हैं। यह कष्ट चौथे नरक तक नहीं पहुंचते, वहीं समाप्त हो जाते हैं।

संयुक्त परिवार से एकाकी जीवन
अपने प्रवचन में विभाश्री माताजी ने आधुनिक जीवनशैली पर गहन चिंतन प्रस्तुत करते हुए कहा कि पहले एक ही कमरे में चार भाई-बहन एक बल्ब की रोशनी में पढ़ाई कर लेते थे। बहुएं संयुक्त परिवार में 30 से 50 सदस्यों की सेवा करती थीं। आज के युग में पति-पत्नी भी एक कमरे में टिक नहीं पा रहे हैं। बच्चों की परवरिश एकाकी हो रही है। वे अकेले सोते, खाते और पढ़ते हैं। यह एक सामाजिक बदलाव है, जिसे समझने और सुधारने की आवश्यकता है।