कोटा। जैन दर्शन के महान विचारक और साहित्यिक हस्ताक्षर बाबू जुगल किशोर जी ‘युगल’ की जन्म शताब्दी के अवसर पर माहेश्वरी भवन, झालावाड़ रोड, कोटा में भव्य त्रिदिवसीय समारोह का आयोजन हुआ। रविवार तक चले इस आध्यात्मिक महोत्सव में देश-विदेश से 1100 से अधिक श्रद्धालुओं और विद्वानों ने भाग लिया।
समारोह के प्रथम दिन प्रातःकालीन अध्यात्मिक साधना शिविर से शुरुआत हुई, जहां प्रतिभागियों ने ध्यान और आत्म-चिंतन के माध्यम से बाबूजी के विचारों से साक्षात्कार किया। दोपहर में “युगल दर्शन के आयाम” विषय पर आयोजित विद्वत संगोष्ठी में प्रख्यात विद्वानों ने बाबूजी के दार्शनिक चिंतन पर प्रकाश डाला। सायंकाल के उद्घाटन समारोह में उनके जीवन से जुड़े अनमोल संस्मरणों का वाचन किया गया, जिसने उपस्थित श्रोताओं को भावविभोर कर दिया।
द्वितीय दिवस के कार्यक्रमों में आकर्षण का केंद्र रहा बाबूजी की अप्रकाशित रचनाओं से संकलित “युगल-वाणी-समग्र” का लोकार्पण। इस अवसर पर आयोजित काव्य-गोष्ठी में देश के प्रतिष्ठित कवियों ने बाबूजी की साहित्यिक प्रतिभा को श्रद्धांजलि अर्पित की। सायंकाल के सम्यकदर्शन संवाद सत्र में “आधुनिक युग में युगल दर्शन की प्रासंगिकता” विषय पर गंभीर चिंतन-मनन हुआ, जिसमें वक्ताओं ने बताया कि कैसे बाबूजी के विचार वर्तमान समय में और भी अधिक महत्वपूर्ण हो गए हैं।
अंतिम दिवस की शुरुआत सम्यक चरित्र पर चर्चा एवं बाबू युगल जी की कृति “चैतन्य की चहक” के साथ हुई । दोपहर की विशेष संगोष्ठी में “युगल साहित्य का वैश्विक प्रभाव” पर चर्चा हुई, जिसमें विदेशों से आए विद्वानों ने अपने अनुभव साझा किए। समापन समारोह में बाबूजी के विचारों का प्रसार निरंतर जारी रहेगा की बात के साथ हुआ।
समारोह के दौरान बाबूजी के जीवन पर आधारित एक विशेष प्रदर्शनी भी लगाई गई, जिसमें उनके दुर्लभ चित्र, हस्तलिखित पांडुलिपियाँ और व्यक्तिगत वस्तुएँ प्रदर्शित की गईं। इस अवसर पर प्रकाशित विशेष पुस्तक चैतन्य वाटिका का लोकार्पण भी हुआ
इस आयोजन की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि रही – बाबूजी के विचारों के प्रति नई पीढ़ी का उत्साह। कई युवाओं विद्वानों ने बाबूजी की प्रसिद्ध कृति देव, शास्त्र, गुरु पूजन”, “केवल रवि किरणों से को उनकी प्रसिद्धि बताया। समारोह के संयोजकों ने बताया कि यह आयोजन केवल एक स्मरणोत्सव नहीं, बल्कि आत्मिक यात्रा का प्रारंभिक चरण है, जिसके माध्यम से बाबूजी के विचार समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुँचेंगे।
बाबूजी के जीवन का सार उनकी इन पंक्तियों में झलकता है – “यह पर्व सिखाता है हमको, जग का जग को देते जाओ, जीवन की नौका हल्की कर, भव-सागर से खेते जाओ।” इन्हीं भावों के साथ समारोह का समापन हुआ, जिसने सभी प्रतिभागियों के हृदय में आत्म-जागृति का दीप प्रज्वलित किया

