कोटा। जैन समाज में उपसर्ग निवारण पर्व रक्षाबंधन के रूप में मनाया जाता है। इस पर्व का मूल संदर्भ 700 जैन मुनियों पर आए उपसर्ग (कष्ट/संकट) की रक्षा से जुड़ा है। महामंत्री अनिल जैन ठोरा ने बताया कि 9 अगस्त को उपसर्ग-दूर करने वाले मुनि विष्णुकुमार और अकंपनाचार्य जी का स्मरण किया जाता है।
ठोरा ने बताया कि सुबह 5.30 से कार्यक्रम प्रारंभ हो जाएंगे, जिसमें अभिषेक व पूजन विधान का कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। अध्यक्ष राजमल पाटौदी ने बताया कि रक्षाबंधन पर मांडना बना कर 700 श्रीफल चढाये जाएंगे और निर्वाण लाडू भी अर्पित किया जाएगा। दोपहर को विभाश्री माताजी सबको रक्षाबंधन भेंट करेंगी।
विनोद टोरडी एवं मनोज जैसवाल ने बताया कि रक्षाबंधन का पर्व गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी एवं आर्यिका विनयश्री माताजी (संघ सहित) के निर्देशन में 13 पिच्छियों के सानिध्य में आयोजित होगा। भगवान श्रेयांश नाथ का मोक्ष कल्याणक दिवस भी इसी दिन होता है अतः 11 किलो का निर्माण लाडू भक्तों द्वारा अर्पित किया जाएगा।
रितेश सेठी ने बताया कि श्रीफल सजाओ प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है।जिसमें प्रथम,दितिय एवं तृतीय इनाम भी दिए जाएंगे। अकंपनाचार्य आदि 700 मुनियो एवं विष्णु कुमार महामुनिराज की भव्य झाँकी सजेंगी और ऐतिहासिक पड़गाहन होगा।
त्याग आध्यात्मिक साधना का महत्वपूर्ण अंग है
प्रवचन के क्रम में गणिनी आर्यिका विभाश्री माताजी ने कहा कि जब व्यक्ति समय-समय पर अपने मन, वचन और काय के दोषों का त्याग करता है, तो वह अपने जीवन में संयम और आत्मबल को बढ़ाता है। जिस प्रकार संयमित जीवन के लिए आहार का नियमन आवश्यक है, उसी प्रकार समयानुसार त्याग भी आध्यात्मिक साधना का महत्वपूर्ण अंग है। उदाहरण देते हुए कहा गया कि जैसे कोई व्यक्ति चारों प्रकार के आहार का त्याग कर देता है, वैसे ही वह क्रोध, लोभ, मोह आदि विकारों को भी त्याग कर सकता है। किसी के प्रति समभाव और क्षमा की भावना रखने से न केवल आत्मिक शांति मिलती है, बल्कि यह पुण्य के संचय का भी माध्यम बनता है।

