आंतरिक शत्रु आत्मा की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा: आचार्य विनिश्चय सागर

0
8

कोटा। कुन्हाड़ी स्थित रिद्धि-सिद्धि नगर दिगंबर जैन मंदिर में गुरुवार को विनिश्चय सागर महाराज ने अपने ससंघ प्रवचनों में आत्मशुद्धि, परिवार-संयम और साधना के महत्व पर विस्तृत मार्गदर्शन दिया।

आचार्य श्री ने कहा कि क्रोध, मान, माया और मिथ्यात्व जैसे आंतरिक शत्रु आत्मा की प्रगति में सबसे बड़ी बाधा हैं। इनके उदय होते ही मनुष्य का विवेक क्षीण हो जाता है और वह दुखों के बंधन में जकड़ जाता है। संयम, नियमित साधना और संतुलित जीवनचर्या अपनाने से ही इन विकारों पर नियंत्रण संभव है।

उन्होंने कहा कि मनुष्य भगवान को बाहर खोजता है, जबकि भगवान मन के भीतर ही प्रतिष्ठित हैं। आत्मचिंतन और भावपूर्ण साधना से व्यक्ति अपने भीतर स्थित दिव्यता को पहचान सकता है।

आचार्य श्री ने कहा कि परिवार, संतान और धन का मोह मनुष्य को जीवनभर बांधे रखता है, जबकि अंत में इन्हीं सबको त्यागकर जाना पड़ता है। इसलिए मोह को कम कर शुभ संकल्पों और पवित्र विचारों को जीवन में स्थान देना चाहिए।

उन्होंने कहा कि मंदिर जाकर केवल दर्शन भर कर लेना पर्याप्त नहीं, बल्कि भगवान को अंतरात्मा में स्थापित करना ही वास्तविक भक्ति है। मन को ईश्वर-चिंतन में लगाने से वैराग्य, स्थिरता और आत्मिक शांति का विकास होता है।

प्रवचन में भोजन के संस्कारों का उल्लेख करते हुए आचार्य श्री ने कहा कि भोजन का मूल्य उसकी थाली की सजावट से नहीं, बल्कि उसकी पवित्रता और भावना से निर्धारित होता है। यदि थाली सोने की हो और भोजन अशुद्ध हो, तो वह पेट नहीं भर सकता, किंतु भावपूर्वक किया गया भोजन आत्मा को भी तृप्त करता है।