अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम से भारत फिर टेंशन में, जानिए क्यों

0
23

वाशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सोमवार को ऐलान किया कि वे सऊदी अरब को एफ-35 लड़ाकू विमानों की बिक्री को मंजूरी दे देंगे। यह घोषणा उन्होंने सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के वाइट हाउस दौरे से महज एक दिन पहले की।

17 नवंबर को ओवल ऑफिस में पत्रकारों से बात करते हुए ट्रंप ने कहा कि मैं कहूंगा कि हम ऐसा करेंगे, हम एफ-35 बेचेंगे। हैरानी की बात यह है कि यह बयान पेंटागन के खुफिया अधिकारियों और प्रमुख क्षेत्रीय सहयोगियों द्वारा इस सौदे के गंभीर जोखिमों को लेकर बार-बार जताई जा रही चिंताओं के बावजूद आया है। दूसरी ओर ट्रंप के ऐलान के बाद इजरायल और भारत टेंशन में हैं।

दरअसल, उसी दिन (17 नवंबर) को इजरायली रक्षा बल (IDF) ने अपने राजनीतिक नेतृत्व को एक औपचारिक स्थिति-पत्र सौंपा, जिसमें इस बिक्री पर कड़ा विरोध दर्ज किया गया। दस्तावेज में चेतावनी दी गई कि इससे इजरायल की क्षेत्रीय गुणात्मक सैन्य बढ़त (Qualitative Military Edge – QME) कमजोर हो सकती है।

इसमें स्पष्ट कहा गया कि इजरायल का हवाई वर्चस्व पूरी तरह पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ विमानों तक विशेष पहुंच पर टिका है और लंबी दूरी के गुप्त अभियानों की सफलता भी इसी पर निर्भर करती है। Ynet द्वारा प्राप्त IDF के आकलन के मुताबिक, सऊदी अरब को एफ-35 मिलने से न सिर्फ इजरायल की हवाई श्रेष्ठता खतरे में पड़ जाएगी, बल्कि उत्पादन लाइनों पर अतिरिक्त दबाव के कारण इजरायल के अपने अतिरिक्त स्क्वाड्रनों के ऑर्डर में भी देरी हो सकती है।

गौरतलब है कि अमेरिकी कानून इजरायल को अरब देशों पर गुणात्मक सैन्य बढ़त बनाए रखने की गारंटी देता है, लेकिन ट्रंप प्रशासन ने अभी तक यह साफ नहीं किया है कि इजरायल को इसके बदले क्या अतिरिक्त क्षमताएं दी जाएंगी।

दूसरी तरफ, रक्षा खुफिया एजेंसी (DIA) की एक गोपनीय रिपोर्ट में पहले ही चेताया जा चुका है कि यदि यह बिक्री हुई तो चीन एफ-35 की अत्याधुनिक तकनीक हासिल कर सकता है, क्योंकि रियाद और बीजिंग के बीच रक्षा संबंध तेजी से मजबूत हो रहे हैं। चीन आज सऊदी अरब का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और दोनों देशों ने हाल के वर्षों में संयुक्त नौसैनिक युद्धाभ्यास भी किए हैं।

वहीं, भारत ने भी इस संभावित हस्तांतरण पर चिंता जताई है, खासकर सऊदी अरब और पाकिस्तान के बीच हालिया रक्षा समझौते के संदर्भ में। उस समझौते में प्रावधान है कि एक देश पर हमला होने को दूसरे देश पर हमला माना जाएगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे पाकिस्तान को सऊदी अरब के रास्ते अप्रत्यक्ष रूप से उन्नत अमेरिकी हथियारों और तकनीक तक पहुंच मिल सकती है।

हथियारों की नई दौड़
एक भारतीय रक्षा विशेषज्ञ ने मीडिया से कहा कि सऊदी एफ-35 बेड़ा पूरे क्षेत्र में सऊदी हवाई प्रभुत्व को इतना मजबूत कर देगा कि भारत सहित सभी पड़ोसी देशों को अपनी वायु एवं मिसाइल रक्षा रणनीतियों पर फिर से विचार करना पड़ेगा। इस तरह की अत्याधुनिक तकनीक का प्रसार मध्य पूर्व और दक्षिण एशिया में हथियारों की नई दौड़ को जन्म दे सकता है।

पहली अरब वायुसेना
बता दें कि सऊदी अरब ने लॉकहीड मार्टिन कंपनी से 48 एफ-35 लड़ाकू विमान खरीदने का औपचारिक अनुरोध किया है। यह अरबों डॉलर का सौदा होगा और इसके पूरा होने पर सऊदी अरब पहली अरब वायुसेना बन जाएगी जिसके पास पांचवीं पीढ़ी के स्टेल्थ विमान होंगे। अभी तक मध्य पूर्व में सिर्फ इजरायल ही एफ-35 का संचालन कर रहा है। इनकी कीमत करीब 10 करोड़ डॉलर प्रति विमान है और ये दुनिया के सबसे उन्नत लड़ाकू विमानों में गिने जाते हैं। इजरायल वाशिंगटन और रियाद के बीच किसी भी संभावित हथियार सौदे का विरोध करता रहा है, क्योंकि इजरायल की गुणात्मक सैन्य बढ़त बनाए रखना अमेरिकी कानून का हिस्सा है।