कोटा। आचार्य प्रज्ञासागर मुनिराज ने गुरूवार को अपने प्रवचन में कहा कि वर्तमान डिजिटल युग में तकनीक ने जहां दूरियों को मिटाया है, वहीं रिश्तों में दूरी ला दी है। उन्होंने गहरी चिंता जताते हुए कहा कि आज का व्यक्ति सोशल मीडिया पर घंटों बिता देता है, दूर बैठे अनजान लोगों से बातचीत करता है, लेकिन अपने परिजनों और स्नेहीजनों से संवाद के लिए समय नहीं निकालता।
उन्होंने कटाक्ष करते हुए कहा, “यदि दिनभर मोबाइल की स्क्रीन पर अंगुलियाँ फिराने की बजाय माता-पिता के चरणों को सहला दिया जाता, तो जीवन में अनुपम शांति और संतोष की अनुभूति होती। उन्होंने कहा कि यदि कोई अपना स्क्रीन टाइम गिन ले, तो समझ जाएगा कि वह समय अपनों और स्वयं के जीवन को देने पर कहीं अधिक सार्थक परिणाम मिल सकते हैं।
संस्कारों का ह्रास और विरासत में संस्कारहीनता
आचार्य श्री ने आधुनिक समाज में संस्कारों के लुप्त होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि पहले जहाँ शोक सभाएं 40 दिनों तक चलती थीं, अब वे 3 दिनों में सिमट गई हैं। एक समय ऐसा आएगा जब मृत्यु पर भी अवकाश का इंतजार करना होगा और शवों को डीप फ्रीजर में रखकर रविवार की प्रतीक्षा की जाएगी।
उन्होंने जोर देकर कहा कि सोशल मीडिया पर 5 हजार फॉलोअर होने के बावजूद विपत्ति के समय कोई आगे नहीं आएगा। अतः समय अपनों के साथ बिताएं, न कि आभासी दुनिया में खो जाएं। पूजन-पाठ, सामायिक, प्रतिक्रमण, माता-पिता की सेवा जैसे जीवनमूल्य आज विलुप्त हो चुके हैं। संपत्ति तो विरासत में मिल रही है, लेकिन संस्कार नहीं।
धर्म से दूर होती युवा पीढ़ी
18 से 35 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं की धार्मिक जीवन से दूरी पर भी उन्होंने चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यदि यह स्थिति रही तो पंचमकाल तक धर्म को जीवित रखना अत्यंत कठिन हो जाएगा। उन्होंने सुझाव दिया कि हर व्यक्ति अपनी वसीयत में यह स्पष्ट कर दे कि संतान यदि मंदिर, पूजन और धार्मिक आचरण से जुड़ी रहेगी, तभी उसे संपत्ति का अधिकार मिलेगा, अन्यथा वह सब मंदिर को समर्पित कर दिया जाए।
धार्मिक युवकों को विवाह में कठिनाई
समाज की एक और विडंबना पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि अब यदि कोई युवक नियमित रूप से मंदिर जाता है और धार्मिक प्रवृत्ति का है, तो उसके विवाह में कठिनाई आती है। उन्होंने व्यंग्य किया कि लड़कियाँ अब यह पूछती हैं कि वीकेंड पर कहाँ ले चलोगे, धार्मिक जीवन या सात्विक विचारों की कोई अपेक्षा नहीं रहती।
दुख को न अपनाने की सीख
उन्होंने दुखों से निपटने का अनूठा तरीका बताते हुए कहा, “जिस प्रकार होम डिलीवरी में यदि किसी और के नाम का सामान आ जाए तो हम उसे लेने से इनकार कर देते हैं, वैसे ही जब दुख आए तो उसे कह दें कि यह मेरा पता नहीं, कहीं और जाए। उन्होंने कहा कि यदि आप भीतर की ओर देखना प्रारंभ कर दें, तो दुख अपने आप ही समाप्त हो जाएगा। दर्द को लिया जाता है, यदि लेना बंद कर दें तो वह स्वयं चला जाएगा।

