लंदन। कुछ महीने पहले तेल कंपनियां कच्चे तेल की कीमत प्रति बैरल 100 डॉलर पर पहुंच जाने की संभावना जता रही थीं, लेकिन अब हालात बिल्कुल उलट है। कच्चे तेल की कीमत 50 डॉलर के आसपास पहुंच चुकी है। लाख टके का सवाल यह है कि कच्चे तेल के दाम में हुई इस गिरावट का आखिरकार दुनिया की अर्थव्यवस्था पर क्या असर पडे़गा?
कच्चे तेल का आयात करने वाले देशों जैसे भारत और दक्षिण अफ्रीका को सस्ते कच्चे तेल का बड़ा फायदा मिलेगा। वहीं, तेल उत्पादक देशों जैसे रूस और सऊदी अरब को बड़ा नुकसान झेलना पड़ेगा। ब्याज दर बढ़ाने को दबावग्रस्त केंद्रीय बैंकों को दबाव से राहत मिलेगी।
कुल मिलाकर, तेल की कीमत में गिरावट का दुनिया की अर्थव्यवस्था पर असर इस बात पर निर्भर करेगा कि दुनिया में तेल की मांग किस तरह का आकार लेती है और बड़े तेल उत्पादक देश कैसी प्रतिक्रिया जताते हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले ही डॉलर की मजबूती और ग्लोबल ट्रेड वॉर का दंश झेल चुकी है।
अमेरिका रूस के बीच फंसा सऊदी
सऊदी अरब, रूस और अमेरिका के बीच पिस रहा है। रूस जहां तेल की कीमत को समर्थन देने में सऊदी अरब का सहयोग करता है, वहीं अमेरिकी राष्ट्रपित डॉनल्ड ट्रंप उसे तेल की कीमत कम करने के लिए ट्वीट कर रहे हैं।
सबकी निगाहें इस सप्ताह होने वाली ग्रुप 20 देशों की बैठक पर टिकी है, जिसमें यह देखना दिलचस्प होगा कि सऊदी अरब और रूस के बीच उत्पादन पर कोई सहमति बन पाती है या नहीं और अगर सहमति बनती है, तो अगले सप्ताह ओपेक की बैठक में इसे फॉलो किया जा सकता है।
वैश्विक वृद्धि के लिए क्या है इसके मायने?
उत्तरी गोलार्ध में जाडे़ का मौसम शुरू होने जा रहा है, ऐसे में तेल की कीमतों में गिरावट से वहां के परिवारों व कंपनियों को सहायता मिलेगी, क्योंकि इस मौसम में अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त होती है। कच्चे तेल का आयात करने वाले दक्षिण अफ्रीका जैसे देश को तेल की कीमत में गिरावट का फायदा मिलेगा।
उनका चालू खाता घाटा कम होगा। वहीं, चीन कच्चे तेल का दुनिया का सबसे बड़ा आयातक देश है और वह अमेरिका के साथ ट्रेड वॉर व घरेलू चुनौतियों के बीच खर्चों में व्यापक तौर पर कटौती से जूझ रहा है।
महंगाई पर क्या होगा असर?
कच्चे तेल की कम कीमत का मतलब महंगाई पर कम दबाव और केंद्रीय बैंक पर मुख्य ब्याज दरों में बढ़ोतरी का कम दबाव होना है। ब्लूमबर्ग के इकनॉमिक सर्वे के मुताबिक, तेल की कीमतों में गिरावट भारत जैसे देश के लिए गेम चेंजर साबित हो सकता है और इसके कारण आरबीआई तटस्थ रुख अपना सकता है।
उभरते बाजारों पर क्या होगा असर?
कैपिटल इकनॉमिक्स एनालिस्टों के अनुमान के मुताबिक, प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर की गिरावट से तेल का आयात करने वाले उभरते देशों की आय सालाना आधार पर जीडीपी के लगभग 0.5 से 0.7 फीसदी के बराबर बढ़ती है।
वहीं, प्रति बैरल कच्चे तेल की कीमत में 10 डॉलर की गिरावट से अधिकांश खाड़ी देशों की आय को सालाना आधार पर जीडीपी के तीन से पांच फीसदी के बराबर नुकसान होगा। संयुक्त अरब अमीरात, रूस और नाइजीरिया के लिए यह आंकड़ा जीडीपी की 1.5 से दो फीसदी के बराबर होगा।
अमेरिका पर क्या होगा इसका असर?
डॉनल्ड ट्रंप ने कच्चे तेल की कीमत में गिरावट को कर में कटौती कहा है। हालांकि, अमेरिका की तेल के आयात पर निर्भरता घटने के बावजूद यह औद्योगिक स्तर पर सकारात्मक आर्थिक नतीजे की संभावना खत्म कर देगा।