इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड से डिफॉल्टर्स कंपनियों में घबराहट

0
716

नई दिल्ली। देश में इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड लागू हो जाने के बाद से अचानक बैंक डिफॉल्टर कंपनियों में मामलों के जल्द निपटारे को लेकर हलचल बढ़ गई है। तय वक्त में डिफॉल्टर कंपनियों के मामले का निपटारा हो रहा है।

बैंकों को डिफॉल्टर कंपनियों के पीछे भागना नहीं पड़ रहा, बल्कि खुद कंपनियां निपटारे के लिए आगे आ रही हैं। सवाल यह है कि क्या इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड लागू हो जाने के बाद कंपनियों के लिए धोखेबाजी करके भागना मुश्किल हो गया है?

वित्तीय सेवाओं के सचिव राजीव कुमार का कहना है कि स्थितियां एकदम बदल गई है। पहले बैंकों को लोन वापस न देने वाली कंपनियों के पीछे भागना पड़ता था, मगर अब कंपनियां खुद ही डिफॉल्ट मामले को नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के जरिये सुलझाने के लिए पहल कर रही है।

ऐसा क्यों हुआ?
दरअसल, इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड इस तरह के प्रावधान हैं कि तय समय तक अगर किसी ने लोन नहीं अदा किया तो कंपनी को बेचकर बैंक कर्ज की राशि वसूल की जा सकती है। इसने कंपनियों में खलबली मचा दी है।

300 मामले एनसीएलटी के पास
यह इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड लागू होने का ही नतीजा है कि पिछले 8 महीने में करीब 300 मामले एनसीएलटी में दर्ज हो चुके हैं। कंपनियां अब मामले को सुलझाना चाहती हैं, वरना उनको पता है कि इतनी सख्ती होगी कि उनकी पूरी कंपनी को बेचने का खतरा बढ़ जाएगा। ये मामले आरबीआई की ओर से डिफॉल्टरों की लिस्ट जारी करने और इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड लागू होने के बाद आए हैं।

विलफुल डिफॉल्टर्स में हड़कंप
बैंकर एस. सी. लोढ़ा का कहना है कि यह कोड विलफुल डिफॉल्टर्स के लिए बेहद खतरनाक है। विलफुल डिफॉल्टर्स वे होते हैं, जो जानबूझकर कर्ज नहीं चुकाते हैं। यही कारण है कि इस कोड के लागू होने के बाद विलफुल डिफॉल्टर्स को इस बात का अहसास हो गया है। अब वे ज्यादा समय तक कर्ज अदायगी किए बिना नहीं रह सकते।

इस कोड के तहत कार्रवाई हुई तो उनको ज्यादा नुकसान होगा। भूषण और एस्सार के मामले में जिस तरह की कार्रवाई तय समय सीमा में हुई, उससे कंपनियों को इसी में भलाई नजर आ रही है कि वे मामले को तय वक्त में सुलटा लें।

इसके अलावा इस कोड ने उन कंपनियों के मन में भी खौफ पैदा कर दिया है, जो लोन ले रही हैं या लेना चाहती हैं। अगर उन्होंने लोन नहीं चुकाया तो उनका हश्र भी इन्हीं विलफुल डिफॉल्टर्स की तरह होगा।

क्या हैं प्रावधान?
इनसॉल्वेंसी ऐंड बैंकरप्सी कोड के तहत अगर कोई कंपनी कर्ज नहीं देती है तो उससे कर्ज वसूलने के लिए दो तरीके हैं। एक या तो कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाए। इसके लिए एनसीएलटी की विशेष टीम कंपनी से बात करती है।

कंपनी के मैनेजमेंट के राजी होने पर कंपनी को दिवालिया घोषित कर दिया जाता है और उसकी पूरी संपत्ति पर बैंक का कब्जा हो जाता है। बैंक उस असेट को किसी अन्य कंपनी को बेचकर कर्ज की राशि वसूलता है। बेशक यह राशि कर्ज की राशि से कम होता है, मगर बैंक का पूरा कर्जा डूबता नहीं है।

कर्ज वापसी का दूसरा तरीका है कि मामला एनसीएलटी में ले जाया जाए। कंपनी के मैनेजमेंट से कर्ज वापसी पर बातचीत होती है। 180 दिनों के भीतर कोई समाधान निकालना होता है। कंपनी को उसकी जमीन या संपत्ति बेचकर कर्ज चुकाने का विकल्प दिया जाता है।

ऐसा न होने पर कंपनी को ही बेचने का फैसला किया जाता है। खास बात यह है कि जब कंपनी को बेचा जाता है तो उसका प्रमोटर या डायरेक्टर बोली नहीं लगा सकता।