रिकॉर्ड आयात एवं अंतरराष्ट्रीय दबाव के कारण चने की कीमतों में भारी गिरावट

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नई दिल्ली। पिछले वर्ष की तुलना में चना की कीमतों में इस वर्ष जोरदार गिरावट दर्ज की गई है। औसत मंडी भाव ₹6,400 प्रति क्विटल से घटकर ₹5,450 प्रति क्विटल पर आये, यानी ₹950 की गिरावट आई। दिल्ली, राजस्थान और देसी किस्मों में यह गिरावट क्रमशः पिछले साल के मुकाबले ₹1,200 और ₹1,125 प्रति क्विटल रही है।

वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने 15.06 लाख टन चने का आयात किया, जो कि पिछले वर्ष के मात्र 1.64 लाख टन और वित्त वर्ष 2022-23 के 0.59 लाख टन की तुलना में कई गुना अधिक है। यह आयात चना बाजार पर भारी दबाव बना रहा है।

चना आयात की अनुमति ऑस्ट्रेलिया में बुवाई के ठीक पहले होने से वहां के किसानों को मार्किट मिला। पिछले वर्ष ऑस्ट्रेलिया का उत्पादन 20 लाख टन से अधिक रहा, जिससे उनकी आपूर्ति क्षमता मजबूत हुई। अभी बिजाई चालू है।

भारत में भारी मात्रा में पीली मटर का आयात भी चना की खपत में गिरावट का बड़ा कारण बना। अफ्रीकी और ऑस्ट्रेलियाई फसल का दबाव आगे भी जारी रहेगा।सितंबर 2025 से अफ्रीका की नई फसल और अक्टूबर 2025 से ऑस्ट्रेलिया की नई फसल बाजार में आने वाली है। इससे चना की कीमतों पर आगे भी दबाव बने रहने की संभावना है।

घरेलू किसान और उद्योग संकट में
जहां एक ओर विदेशी किसान और निर्यातक जोश में हैं, वहीं भारतीय किसान और दाल उद्योग तनाव में हैं। बाजार अब घरेलू मांग और आपूर्ति से नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय चालों से नियंत्रित हो रहा है, जिससे देश के चना उत्पादकों को प्रतिस्पर्धा में बने रहना मुश्किल हो रहा है।

आंकड़ों को देखें तो पिछले महीने के मुकाबले बाज़ारों में कुछ सुधार जरूर आया है, एक तरफ घरेलू मांग निकली तो दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया में स्टॉक घटा। इससे साफ़ संकेत मिलते हैं कि दलहन बाजार अब पूरी तरह विदेशी बाज़ारों पर निर्भर हो रहे हैं। आगामी त्योहारी मांग और घटते आयात से कीमतों को सितम्बर- अक्टूबर तक समर्थन मिल सकता है।