कोविड-19 की नई लहर भारत सहित कई देशों में फैली, सतर्कता जरूरी

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नई दिल्ली। कोविड-19 की एक नई लहर चुपचाप एशिया के कई हिस्सों में फैल रही है। सिंगापुर, हांगकांग, भारत और थाईलैंड जैसे देशों में मामले बढ़ते दिख रहे हैं। भारत में हालांकि स्थिति अभी काबू में है, लेकिन स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक 19 मई तक देशभर में 257 सक्रिय मामले दर्ज किए गए हैं।

सिंगापुर में संक्रमण मई की शुरुआत में 14,000 के पार पहुंच गया, जो अप्रैल के आखिरी सप्ताह में 11,100 था। यह अचानक उछाल नए वैरिएंट JN.1 से जुड़ा माना जा रहा है, जो ओमिक्रॉन का ही नया, ज्यादा फैलने वाला रूप है।

JN.1 वैरिएंट क्या है और यह पहले से कितना अलग है?
JN.1 दरअसल ओमिक्रॉन की एक शाखा BA.2.86 का नया रूप है, जिसे लोग ‘पाइरोला’ भी कहते हैं। Yale Medicine के अनुसार, JN.1 में स्पाइक प्रोटीन में एक खास बदलाव हुआ है, जो इसे हमारे शरीर की बचाव प्रणाली से बचने में मदद करता है। इसे पहली बार अगस्त 2023 में पाया गया था और दिसंबर में WHO ने इसे ‘Variant of Interest’ यानी ध्यान देने वाला नया रूप बताया था। इसमें करीब 30 बदलाव हैं, जो इसे ज्यादा तेजी से फैलने में मदद करते हैं, लेकिन अब तक यह ज़्यादा खतरनाक नहीं माना गया है।

भारत में स्थिति कैसी है और क्या खतरा है?
फिलहाल भारत में JN.1 वैरिएंट की कोई पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन विशेषज्ञ सतर्क रहने की सलाह दे रहे हैं। सिंगापुर और हांगकांग में LF.7 और NB.1.8 जैसे सब-वैरिएंट्स को संक्रमण के पीछे माना जा रहा है, जो JN.1 की ही शाखाएं हैं। भारत में मामलों की संख्या भले ही कम हो, लेकिन यह समय लापरवाही का नहीं है। विशेषज्ञों का कहना है कि कोविड अभी पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, बल्कि एक ‘एंडेमिक’ बन गया है – यानी समय-समय पर इसके छोटे स्पाइक्स आ सकते हैं।

गर्मियों में कोविड की वापसी क्यों हो रही है?
आमतौर पर गर्मियों में सांस संबंधी बीमारियों में गिरावट आती है, लेकिन इस बार कोविड के मामले उल्टा बढ़ रहे हैं। डॉ. दीक्षा गोयल (Marengo Asia Hospitals) के अनुसार, यह लहर इस वजह से आ रही है क्योंकि ज्यादातर लोगों ने पिछले एक साल में कोई बूस्टर डोज़ नहीं लिया है और समय के साथ वैक्सीन का असर भी कम हो गया है। यही वजह है कि संक्रमण का जोखिम फिर बढ़ गया है, भले ही यह बहुत गंभीर न हो।

JN.1 किस तरह से फैलता है और यह कितना संक्रामक है?
विशेषज्ञों का कहना है कि JN.1 अपने पहले के वेरिएंट्स की तुलना में ज्यादा तेजी से फैलता है। इसके अंदर मौजूद म्यूटेशन इसे मानव कोशिकाओं से आसानी से चिपकने और प्रतिरक्षा से बचने में मदद करते हैं। यह संक्रमण भी उसी तरह फैलता है जैसे पहले के कोविड वैरिएंट्स – संक्रमित व्यक्ति के मुंह या नाक से निकली बूंदों से, भीड़भाड़ वाले बंद कमरों में नजदीकी संपर्क से और किसी संक्रमित सतह को छूने से (हालांकि यह कम होता है)।

JN.1 के लक्षण क्या हैं?
इस वैरिएंट के लक्षण पहले जैसे ही हैं और अधिकतर मामलों में हल्के ही रहते हैं। डॉ. संदीप बुधिराजा (Max Healthcare) के मुताबिक यह ओमिक्रॉन की तरह ही व्यवहार करता है और ज्यादा मामलों में घर पर ही इलाज संभव है। हां, कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों में थकावट थोड़ी ज्यादा देखी जा सकती है। हालांकि अधिकतर मरीज जल्दी ठीक हो जाते हैं, लेकिन बुजुर्गों, डायबिटीज या दिल के मरीजों को सावधानी बरतने की जरूरत है क्योंकि उनमें संक्रमण थोड़ा गंभीर हो सकता है।

क्या RT-PCR टेस्ट से JN.1 का पता चलता है?
इस वेरिएंट की जांच अब भी पारंपरिक RT-PCR टेस्ट से ही की जाती है। यदि सैंपल पॉज़िटिव आता है, तो उसे जीनोमिक सीक्वेंसिंग के लिए भेजा जाता है ताकि पता चल सके कि किस वैरिएंट का संक्रमण है। इसके अलावा कुछ मल्टीप्लेक्स PCR टेस्ट भी उपलब्ध हैं, जो एक साथ कई वायरस की जांच कर सकते हैं। जांच की कीमत ₹500 से ₹800 के बीच है, जबकि एडवांस टेस्ट महंगे हो सकते हैं।

क्या वैक्सीन अभी भी असरदार हैं?
डॉक्टरों का कहना है कि मौजूदा वैक्सीन अब भी JN.1 से काफी हद तक सुरक्षा देती हैं। यह संक्रमण को पूरी तरह रोकें या न रोकें, लेकिन गंभीर बीमारी और अस्पताल में भर्ती होने का खतरा काफी हद तक कम करती हैं। इसलिए बूस्टर डोज़ खास तौर पर उन लोगों को लगवानी चाहिए जो हाई-रिस्क कैटेगरी में आते हैं।

क्या अब फिर से मास्क पहनना जरूरी है?
विशेषज्ञों की राय है कि भीड़भाड़ वाली जगहों, अस्पतालों और बंद कमरों में मास्क पहनना एक अच्छा कदम होगा। विशेषकर बुजुर्ग, बीमार या कमजोर इम्यूनिटी वाले लोग जरूर सतर्क रहें। साथ ही, हाथ धोते रहना, बीमार होने पर घर में रहना और बूस्टर डोज़ लगवाना अब भी ज़रूरी उपाय माने जा रहे हैं।

भारत में फिलहाल स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन यह समय आत्मसंतोष का नहीं है। डॉक्टरों का कहना है कि कोविड अब फ्लू की तरह हो गया है – पूरी तरह गया नहीं है, लेकिन सामान्य जीवन के साथ रहना सीखा जा सकता है, बशर्ते सतर्कता बनी रहे। इसके लिए जरूरी है कि देशों के बीच जानकारी साझा हो, रिपोर्टिंग मजबूत हो और जीनोमिक निगरानी लगातार चलती रहे ताकि किसी नए खतरे को समय रहते पहचाना जा सके।