शेल कंपनियों की राजनीतिक सांठगांठ पर सरकार की नजर

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  • वित्त मंत्रालय की फाइनैंशल इंटेलिजेंस यूनिट और इनकम टैक्स विभाग डायरेक्टरों से पूछताछ करेगा

  • सरकार यह पता करना चाहती है कि आखिर इन शेल कंपनियों को बनाने के पीछे किसका हाथ है

नई दिल्ली। शेल कंपनियों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने और उनके बैंक खातों पर रोक लगाने के बाद अब सरकार यह पता करने जा रही है कि इन शेल कंपनियों का राजनीतिक नेताओं और बड़े कॉर्पारेट दिग्गजों से क्या लिंक है।

यानी, इनके पीछे राजनेताओं और बड़ी कंपनियों का तो हाथ नहीं, जिन्होंने अपनी ब्लैक मनी को खपाने के लिए इन शेल कंपनियों का निर्माण किया।

सरकार का यह शक इसलिए गहरा गया है कि जितनी शेल कंपनियां पकड़ी गई हैं, उनमें से 60 फीसदी कंपनियां तो सिर्फ कागज में हैं और उनका कोई ऑफिस तक नहीं है।

शेल कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन के समय ऑफिस का जो पता दिया है, उसमें तो किसी और कंपनी का ऑफिस है। इसके अलावा एक ही पते पर कई कंपनियों ने रजिस्ट्रेशन करा रखा है और जांच में पता चला कि उस पते पर किसी कंपनी का ऑफिस नहीं है।

वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, शेल कंपनियों के डायरेक्टरों से पूछताछ की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। इनको नोटिस भेजा जा रहा है।

अब वित्त मंत्रालय की फाइनैंशल इंटेलिजेंस यूनिट और इनकम टैक्स विभाग डायरेक्टरों से पूछताछ करेगा। सरकार यह पता करना चाहती है कि आखिर इन शेल कंपनियों को बनाने के पीछे किसका हाथ है।

कौन हैं वे लोग, जो शेल कंपनियों के इस खेल को अंजाम दे रहे हैं। इसमें राजनीतिक नेताओं और बड़े कॉर्पोरेट लोगों की मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता।

गौरतलब है कि बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव की बेटी मीसा भारती और उनके पति के खिलाफ ईडी मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच कर रहा है।

इन दोनों पर आरोप है कि इन्होंने शेल कंपनियों के जरिये अपने ब्लैक मनी को वाइट में तब्दील किया और मनी लॉन्ड्रिंग को अंजाम दिया। इनकम टैक्स विभाग और सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिश (एसएफआईओ) शेल कंपनियों पर कार्रवाई जारी रखेंगे।

सूत्रों के मुताबिक, 10 लाख कंपनियां आईटी डिपार्टमेंट के राडार पर हैं जिन पर जांच जारी है। मिल रही जानकारी के मुताबिक 6 लाख ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने नियमों का पूरा पालन नहीं किया है।

सरकार का मानना है कि शेल कंपनियों के खत्म होने से टैक्स बेस में बढ़त होगी। सरकार शेल कंपनियों को लेकर और सख्त हो गई है। उधर शेल कंपनियों के डायरेक्टर्स अब किसी दूसरी कंपनी में डायरेक्टर नहीं बन पाएंगे।

कंपनी मामलों के मंत्रालय में हुई बैठक में यह फैसला लिया गया है। इस मामले पर इंटरनैशनल टैक्स अडवाइजर टी पी ओस्तवाल का कहना है कि सबसे पहले तो शेल कंपनियों की परिभाषा तय होनी चाहिए।

रातोंरात कोई कंपनी क्या शेल कंपनी हो सकती है? फर्जीवाड़ा करनेवाली कंपनियों पर सख्ती होनी चाहिए। किसी कंपनी के शेल कंपनी साबित होने पर ही डायरेक्टर पर ऐक्शन होना चाहिए।