लोकसेवकों के अवकाश आवेदन की नकल देना बाध्यकारी नहीं

899
  • अहम फैसला : निजता के मौलिक अधिकार के लिए मप्र सूचना आयोग ने किया अहम निर्णय

  • न्यायाधीशों की छुट्टियों की अर्जियों की नकलें मांगने वाले न्यायाधीश की अपील खारिज। लोकहित से संबंध नहीं रखती यह जानकारी।

भोपाल। मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग ने एक अहम फैसले में कहा कि सूचना के अधिकार के तहत लोक सेवकों के अवकाश व उपस्थिति संबंधी जानकारी दी जानी चाहिए लेकिन अवकाश आवेदनों की नकलें देना अनिवार्य नही। निजता के मौलिक अधिकार के चलते अवकाश के व्यक्तिगत कारणों का खुलासा तब तक नहीं किया जाए जब तक कोई अपरिहार्य स्थिति स्थिति उत्पन्न न हो।

सूचना आयुक्त आत्मदीप

राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने एक न्यायाधीश की अपील खारिज करते हुए यह महत्वपूर्ण फैसला सुनाया। अपीलार्थी न्यायाधीश ने सभी न्यायाधीषों के अवकाश आवेदनों की प्रमाणित प्रतिलिपियां नहीं दिए जाने पर लोक सूचना अधिकारी (न्यायालय अधीक्षक एवं अपीलीय अधिकारी) जिला व सत्र न्यायाधीष के निर्णय को चुनौती दी तथा उक्त प्रतिलिपियां दिलाने की मांग की।

इसे स्वीकार नहीं किया गया क्यांकि न्यायाधीशों द्वारा अवकाश आवेदन में व्यक्तिगत कारणों का उल्लेख किया है। जिससे सार्वजनिक करने से न्यायाधीशों की निजता का हनन होता। आयोग ने कहा कि छुट्टी के आवेदन की जानकारी न तो लोकहित से जुड़ी है और न ही इसे चाहने का औचित्य स्वीकार किया जा सकता है।

सूचना का अधिकार अधिनियम धारा 8 (1) (जे) में स्पष्ट उल्लेख है कि जब तक लोक सूचना अधिकारी की ऐसी सूचना को सार्वजनिक करना लोकहित में न्यायोचित न हो, तब तक इसका प्रकटन नहीं किया जाए।

सूचना आयुक्त ने अपीलार्थी न्यायाधीश की यह दलील नामंजूर कर दी कि न्यायाधीशों की मासिक बैठक में मौजूद नहीं होने से जिला व सत्र न्यायाधीश ने मुझसे स्पष्टीकरण मांगा। जिसका उत्तर देने के लिए मुझे उक्त जानकारी की जरूरत है।

आयुक्त आत्मदीप ने फैसले में कहा कि न्यायालय अधीक्षक तथा जिला व सत्र न्यायाधीश लिखित में यह स्पष्ट किया कि अपीलार्थी न्यायाधीश से स्पष्टीकरण लेना या अपीलार्थी द्वारा स्पष्टीकरण कार्यालय में दिया जाना लंबित नहीं है। आयोग ने लोक सूचना अधिकारी व अपीलीय अधिकारी के आदेश में वैधानिक त्रुटि न पाते हुए उसे न्यायोचित ठहराया।

यह है मामला –
मप्र के मेहगांव के व्यवहार न्यायाधीश ने आरटीआई के तहत जिला व सत्र न्यायालय, भिंड के लोक सूचना अधिकारी से जानकारी मांगी थी कि अप्रेल,15 से फरवरी,16 तक मासिक मीटिंग में उपस्थित न्यायाधीशों का हस्ताक्षर पत्रक तथा इस अवधि में जिले में पदस्थ सभी न्यायाधीशों के अवकाश आवेदनों एवं उनमें दिए आदेशों की प्रतियां उपलब्ध कराई जाए। राज्य सूचना आयोग के निर्णय से निजता के अधिकार को बल मिला।