दवा बाजार पर लगाम, जीएसटी से पहले गिरे दाम

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नई दिल्‍ली। औषधि उद्योग ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) लागू होने के बाद दवाओं की कीमतें चढ़ने का अंदेशा जताया था क्योंकि उन पर 12 फीसदी जीएसटी लगाया जाना है। लेकिन दवाएं महंगी होने का खटका दूर करने के लिए राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) हरकत में आ गया है ताकि कीमतों पर काबू रखा जा सके।

एनपीपीए ने औषधि मूल्य नियंत्रण आदेश (डीपीसीओ), 2013 की प्रथम अनुसूची में शामिल 761 दवाओं की अधिकतम मूल्य सीमा में तब्दीली कर दी है और इसकी अधिसूचना भी जारी हो गई है। संशोधित मूल्य सूची के मुताबिक ज्यादातर दवाओं के दाम कम कर दिए गए हैं और कुछ दवाओं के दाम ही पहले जितने रहे हैं। इन सभी दवाओं पर 12 फीसदी कर लगना है।

इस अधिसूचना के बाद एचआईवी की दवा, रेबीज की दवा, की दवाओं, रेबीज निवारक दवाओं, दिल की धड़क नियमित करने वाली दवा, निमोनिया की दवा, कैंसर की दवा, फोलिक एसिड की गोलियां और क्रॉन डिजीज जैसी दुर्लभ बीमारियों की दवा सस्ती हो जाएंगी। त्वचा रोगों की कुछ दवाएं भी सस्ती हो जाएंगी। इनमें से कुछ के दाम में तो 400 रुपये से भी ज्यादा की कटौती की गई है।

मसलन कैंसर की दवा बोर्टेजॉमिब की कीमत पहले 11,636.60 रुपये थी, जो अब 11,160.08 रुपये कर दी गई है। गंभीर रोगों की दवाएं तो सस्ती की ही गई हैं, पैरासिटामॉल जैसी रोजमर्रा की दवाओं के दाम भी घट गए हैं। अधिकतम दाम में कमी का सीधा मतलब यह है कि जीएसटी लागू होने के बाद इन दवाओं की कीमतों में मामूली इजाफा ही होगा।

इस औषधि उद्योग को इस पर ताज्जुब नहीं हुआ है। भारतीय औषधि विनिर्माता संघ (आईडीएमए) के अध्यक्ष दीपनाथ रायचौधरी कहते हैं, ‘अनुसूचित दवाओं की मूल्य सीमा घटाई गई है और इसकी उम्मीद भी की जा रही थी।’ एनपीपीए की सूची में दिए गए दाम में जीएसटी शामिल नहीं है। इसमें वैट उत्पाद शुल्क तथा वैट को भी हटा दिया गया है।

जिन अनुसूचित दवाओं पर कंपनियों को उत्पाद शुल्क नहीं देना पड़ता है, उनके मूल्य में बदलाव नहीं किया गया है। हालांकि रायचौधरी कहते हैं, ‘अधिकतम मूल्य घट गया है, लेकिन इसमें जीएसटी जोड़ेंगे तो कीमत पहले से ज्यादा ही हो जाएगी।’ बहरहाल जीएसटी प्रणाली में भी स्टेंट की कीमतें बढ़ाई नहीं गई हैं। एनपीपीए ने स्टेंट की अधिकतम कीमत 30,180 रुपये तय की है और धातु के सादा स्टेंट का दाम 7,400 रुपये रखा है।

स्टेंट की ही तरह शरीर की प्रतिरोधी क्षमता को कम करने वाली इम्यूनोसप्रेसेंट दवाओं जैसे साइक्लोस्पोरिन के दाम भी नहीं बदले गए हैं। ल्यूकीमिया की दवा और लाल रक्त कणिकाओं के उत्पादन पर नियंत्रण रखने वाली दवा और हेपैटाइटिस बी के टीके की कीमत भी जस की तस है। लेकिन जो दवाएं अनुसूची में शामिल नहीं हैं, उनकी कीमत में सालाना 10 फीसदी बढ़ोतरी की जा सकेगी। उद्योग को नई सूची से तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन निकोटिन गम पर 18 फीसदी कर लगाया जाना उसे नहीं भा रहा है।

सिप्ला का निकोटेक्स इसी श्रेणी में आ रहा है और सरकार ने उस पर कर की दर अभी तक कम नहीं की है। इन दवाओं के अलावा कुछ जीवनरक्षक दवाओं पर 5 फीसदी जीएसटी लगना है। विश्लेषक पहले ही कहते आए हैं कि जीएसटी से दवाओं पर बहुत अधिक असर नहीं पड़ेगा। लेकिन उद्योग रसीद के बगैर बिकने वाली दवाओं पर केवल 40 फीसदी इनपुट टैक्स क्रेडिट की बात से भी निराश है।