नई दिल्ली। मूडी और अन्य विशेषज्ञों ने रविवार को कहा कि क्रूड की बढ़ती कीमतों और रुपए के लगातार गिरने के चलते चालू वित्त वर्ष में भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट (सीएडी) जीडीपी का 2.5 फीसदी तक रह सकता है।
तुर्की में उथल-पुथल भी इसके लिए जिम्मेदार
पिछले हफ्ते तुर्की में राजनीतिक उथल-पुथल के चलते रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 70.32 रुपए के रिकाॅर्ड स्तर तक गिर गया। वहीं, चीन की ओर से आर्थिक स्थिति को ठीक रखने के लिए संपत्तियों को सुरक्षित रखने पर जोर देने से उभरते देशों की करंसी पर दबाव बढ़ गया है।
एक्सपोर्ट में मिलेगा फायदा
मूडीज इनवेस्टर्स सर्विस के वाइस प्रेजिडेंट और सीनियर एनलिस्ट जॉय रैंकोथ की ओर से कहा गया है कि कमजोर रुपए के चलते भारत मार्जिन पर निर्यात का लाभ उठाएगा, लेकिन इससे व्यापार घाटे के कम होने की संभावना नहीं है, क्योंकि जुलाई में ही यह 3 साल के उच्चतम स्तर 18.02 अरब डॉलर तक पहुंच गया है।
क्रूड की कीमतों से पड़ेगा असर
उन्होंने कहा कि भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट (सीएडी) 2018-19 में 2.5 फीसदी तक बढ़ने की संभावना है। जबकि वित्त वर्ष 2017 में यह 1.5 फीसदी था। इसका पहला बड़ा कारण तेल की कीमतों में बढ़ोतरी है। उन्होंने कहा कि वित्त वर्ष 2017-18 में नेट ऑयल इंपोर्ट जीडीपी का 2.6 फीसदी था, जो कि वित्तीय वर्ष 2019 में और बढ़ेगा।”
मजबूत हुआ है अमेरिकी डॉलर
एपीएसी के मुख्य अर्थशास्त्री राजीव विश्वास ने कहा कि 2018 की शुरुआत के बाद से अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपए का लगातार गिरना कई महत्वपूर्ण कारणों को दर्शाता है। राजीव ने आगे कहा कि “एक प्रमुख चालक धीरे-धीरे अमेरिकी फेड मौद्रिक नीति को मजबूत कर रहा है।
यही कारण है कि पूरी दुनिया में अमेरिकी डॉलर की कीमत बढ़ी है। जबकि अन्य मुद्राओं में उसके मुकाबले गिरावट आई है। हालांकि, रुपए की कमजोरी भारत के मौजूदा चालू खाता घाटे (सीएडी) को भी दर्शाती है क्योंकि ग्लोबल लेवल पर क्रूड की बढ़ती कीमत में वृद्धि होने से तेल आयात करने में दिक्कतें बढ़ी हैं।
वहीं, भारतीय रुपए के लिए चिंता का एक विषय यह भी है कि अर्जेंटीना, वेनेजुएला और तुर्की समेत बड़े उभरते बाजारों में पैदा हुए आर्थिक संकट ने वैश्विक निवेशकों को उभरते बाजार की कंरसी और इक्विटी के बारे में सतर्क कर दिया है।
नकारात्मक और सकारात्मक दोनों होंगे प्रभाव
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च के प्रिंसिपल इकोनोमिस्ट सुनील सिन्हा ने कहा कि रुपए में गिरावट से अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव होंगे। नकारात्मक प्रभाव की बात करें तो इससे तेल का आयात बढ़ेगा, जो कि करंट अकाउंट डेफिसिट को और बढ़ाएगा। इसके अलावा तेल महंगा होने से भारत में महंगाई दर भी बढ़ने की संभावना है। इसका पूरा असर इन्फ्रा और अन्य परियोजनाओं पर पड़ेगाा।
वहीं, अगर सकारात्मक प्रभाव की बात करें तो, यह रुपए का ओवर वैल्यूड होना निर्यात प्रतिस्पर्धा को नुकसान पहुंचा रहा था। ऐसे में अब रुपए का भाव गिरने से से भारतीय वस्तुओं और सेवाओं की निर्यात प्रतिस्पर्धा में सुधार होगा। इसके साथ ही इससे सबसे ज्यादा फायदा एक्सपोर्ट करने वाली आईटी कंपनियों को होगा।