नई दिल्ली। कागजी कंपनियों (शेल कंपनियों) के जरिए वित्तीय हेराफेरी की जांच में आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए सरकार अब एक ठोस पहल करने जा रही है। सरकार शेल कंपनियों के लिए एक उचित परिभाषा बनाने की तैयारी कर रही है, ताकि जांच प्रभावित न हो सके और कोर्ट में भी मजबूती से पक्ष रख सके।
एक अधिकारी ने बताया कि कई कंपनियों, जिन पर ‘शेल कंपनियों’ के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग और अन्य वित्तीय हेराफेरी का आरोप है, ने हाल के महीने में उनके खिलाफ हुए रेग्युलेटरी एक्शन को चुनौती दी है। इसलिए अब यह जरूरी समझा जा रहा है कि सभी तरह की रेग्युलेटरी खामियों को दूर करना जरूरी है जिससे कि दोषियों के खिलाफ आरोप साबित करने में होने वाली देरी को टाला सके।
नेताओं पर भी लगा है आरोप
अधिकारी ने बताया कि शेल कंपनियों के लिए कोई निश्चित परिभाषा नहीं होने से जांच और अभियोजन का पक्ष प्रभावित होता है। आमतौर पर शेल कंपनियां सिर्फ कागजों पर बनी होती हैं, जिनका इस्तेमाल वित्तीय दावपेंच के लिए किया जाता है। कुछ कंपनियों को भविष्य के फायदे के हिसाब से कागजों में बनाकर रखा जाता है। इस तरह के भी आरोप हैं कि राजनीतिक दलों के कुछ नेता परदे के पीछे से अपना बिजनेस चलाने के लिए ‘शेल कंपनियों’ का इस्तेमाल करते हैं।
सरकार को जांच एजेंसियों से मिले सुझाव
अधिकारी ने बताया कि मिनिस्ट्री ऑफ कॉरपोरेट अफेयर्स (MCA) को एक मल्टी एजेंसी टॉस्क फोर्स बनाने का सुझाव मिला है। जिसमें प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट (एफआईयू), डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (डीआरआई), कैपिटल मार्केट्स रेग्युलेअर सेबी और इनकम टैक्स डिपार्टमेंत के अफसरों को शामिल किया जाए।
सुझावों पर अब कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री, वित्त मंत्रालय, सेबी और आरबीआई की ओर से आगे चर्चा की जाएगी। इसके अलावा, फाइनेंशियल स्टैबिलिटी एंड डेवलपमेंट काउंसिल (एफएसडीसी) के स्तर भी चर्चा हो सकती है। सुझावों में शेल कंपनियों को परिभाषित करने को लेकर एक सभावित मानकों की लिस्ट भी शामिल है।
शेल कंपनियों के लिए परिभाषाओं पर विचार किया जा रहा है उसमें ग्लोबल लेवल पर प्रचलित परिभाषाएं भी शामिल हैं। हालांकि रेग्युलेटर्स और सरकारी विभाग इस बात पर जोर दे रहे हैं कि शेल कंपनियों की परिभाषा भारतीय संदर्भ में निर्धारित हो।
ग्लोबल लेवल पर आर्थिक अपराध पर लगाम लगाने के उद्देश्य से पॉलिसी बनाने के लिए सुझाव देने वाले संगठन ‘ऑर्गनाइजेशन फॉर इकनॉमिक को-ऑपरेशन ऐंड डिवेलपमेंट’ (OECD) की परिभाषा के मुताबिक शेल कंपनी वह फर्म है जो औपचारिक तौर पर रजिस्टर्ड होती है और किसी इकोनॉमी में कानूनी तौर पर स्थापित होते हैं लेकिन वे फंड को इधर से उधर करने के अलावा उस इकोनॉमी में किसी भी तरह का ऑपरेशन नहीं करते।
सेबी ने सुझाव दिया है कि ऐसी कंपनी जिसके पास कोई खास ऑपरेशनल एसेट या बिजनेस गतिविधि न हो बल्कि वह किसी और के लिए काम करती हो तो उन्हें शेल कंपनी कहा जाए।