स्टॉकिस्ट बाहर हो जाने से धनिए में बड़ी तेजी के आसार नहीं

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इंदौर। स्टॉकिस्ट बाहर हो जाने से धनिए में बड़ी तेजी के आसार नहीं है। विदेशों से धनिये का आयात, केरीओव्हर स्टॉक, जीएसटी लागू होने, नकद रुपया बाजार से बाहर हो जाने से व्यापार गत वर्षों जैसा नहीं हो रहा है। इसके अलावा पिछले  3-4 वर्षों से विदेशी माल ने भारतीय बाजार में पेठ बना ली है। भारतीय उत्पादकों ने घाटा भी उठाया है।

आयातित धनिया तेलयुक्त होता है किंतु पीसने वाले थोड़ी-थोड़ी मात्रा में मिलावट कर देते हैं। देश के कुछ भागों में सीधे बिक भी जाता है। स्टॉक प्रवृत्ति समाप्त हो जाने से अनचाही तेजी आ जाती थी, वह लगभग समाप्त हो गई है। ई-वे बिल शुरू हो जाने से धनिए का व्यापार पहले भी एक नंबर में होता था अब 100 प्रतिशत 1 नंबर में होगा।

भावांतर योजना और सरकारी खरीदी में देरी से किसानों ने रुपयों की जरूरत के लिए बेमौसम धनिया बेचकर चले गए। घबराहट अधिक बढ़ गई थी। वायदा वालों ने इसमें अहम् रोल निभाया। सर्वाधिक रोचक तथ्य यह है कि ईगल धनिये की कीमत जीएसटी जे़ 46 रुपए किलो और सामान्य धनिए की कीमत 40 से 45 रुपए किलो है।

जिस बारदाना में धनिया भरा जा रहा है, उसकी कीमत 40 से 45 रुपए है। यह कितनी विकट स्थिति है। अर्थात् माल और बारदान की कीमत बराबर है। बेचने जब जाते हैं तब केवल धनिए की कीमत का सौदा होता है और इतना महंगा बारदाना साथ में जाता है।

जहां तक केरी फारवर्ड का सवाल है इसमें अधिकतम अंतर 20 प्रतिशत का आना चाहिए। जबकि वर्तमान में शतप्रतिशत या इससे कुछ कम का अंतर आ रहा है। मसाला पीसने वालों ने सीजन में हरा धनिया खरीद लिया था। जैसे-जैसे सीजन समाप्त होता जाता है, हरे धनिए की उपलब्धि घट जाती है।

सीजन में हरा धनिया सामान्य से कुछ अधिक भावों पर मिल जाता है, जबकि ऑफ सीजन में कठिनाई से मिलता है। जिसके पास हरे धनिए का स्टॉक होता है, वे मुंह मांगे दाम मांगते हैं। एक अनुमान के अनुसार मप्र, गुजरात और राजस्थान में धनिए का उत्पादन 50 से 60 लाख बोरी हुआ है।