‘ऐंटीबायॉटिक दवाओं से दुनियाभर में हर साल 7 लाख लोगों की मौत’

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दिल्ली। एटना इंटरनैशनल ने अपने श्वेत पत्र ‘ऐंटीबायॉटिक प्रतिरोध: एक बहुमूल्य चिकित्सा संसाधन की ओर से बेहतर प्रबंध’ के जरिए ऐंटीबायॉटिक दवाओं के बुरे प्रभावों को बताया है।

पत्र में कहा गया है कि बीमारी के बोझ, खराब सार्वजनिक स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे, बढ़ती आय और सस्ती ऐंटीबायॉटिक दवाओं की अनियमित बिक्री जैसे कारकों ने भारत में एंटीबायॉटिक प्रतिरोध के संकट को बढ़ा दिया है।ऐंटीमिक्रोबियल प्रतिरोध (एएमआर) से दुनियाभर में हर साल करीब सात लाख लोगों की मौत हो रही है और 2050 तक यह आंकड़ा एक करोड़ तक पहुंच सकता है। इस आंकड़े में बढ़ोतरी का प्रमुख कारण ऐंटीबायॉटिक दवाओं का अनियंत्रित इस्तेमाल है।

पत्र में कहा गया, ‘जितनी तेजी से दुनिया का मेडिकल सेक्टर विकसित हो रहा है उतनी ही तेजी से ऐंटीबायॉटिक दवाओं का इस्तेमाल लोगों में बढ़ता जा रहा है।’

दुनियाभर में ऐंटीबायॉटिक प्रतिरोध के प्रति बढ़ती चिंता पर वी हेल्थ बाई एटना के चीफ मेडिकल ऑफिसर डॉ. प्रशांत कुमार दास ने कहा, ‘अधिकांश भारतीय सोचते हैं कि ऐंटीबायॉटिक दवाएं सामान्य सर्दी और गैस्ट्रोएन्टेरिटिस जैसी बीमारियों का इलाज कर सकती हैं, जो गलत धारणा है।

इन संक्रमणों में से अधिकांश वायरस के कारण होते हैं और ऐंटीबायॉटिक दवाइयों की उनके इलाज में कोई भूमिका नहीं होती है।’ भारत दुनिया में ऐंटीबायॉटिक दवाओं के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है। इस मुद्दे पर एटना इंडिया के प्रबंध निदेशक मानसीज मिश्रा ने कहा, ‘ऐंटीबायॉटिक प्रतिरोध एक संकट है जो विश्व स्तर पर सभी को प्रभावित करता है।

एक वैश्विक, बहुमुखी रणनीतिक समाधान के साथ अब हमें इस मुद्दे को हल करने की आवश्यकता है।’ ऐंटीबायॉटिक दवाओं से होने वाली मौत के आंकड़ों में यूरोप सहित अमेरिका भी शामिल है। रिपोर्ट के आंकड़ों के मुताबिक इन दवाओं की बिक्री दुनिया के 76 गरीब देशों में तेजी से हो रही है।