कोटा में मैस के कचरे से बायो गैस बनाएगा नगर निगम

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कोटा। मैस से निकलने वाले कचरे से अब बायो गैस बनाई जाएगी। निगम की इस योजना से कचरे से निजात मिलने के साथ ही कुकिंग गैस भी मिलेगी। इसकी शुरुआत नए कोटा से होगी जहां 3 हजार से अधिक मैस हैं। अभी तक इस कचरे को मैस वाले नालों में डाल देते हैं। इससे उठती सड़ांध से आसपास रहने वाले लोग परेशान होते हैं।

नए कोटा क्षेत्र में सर्वाधिक मैस हैं। यहां पर 80 प्रतिशत से अधिक हॉस्टल से निकलने वाले कचरे का न तो सही तरीके से उठाव हो रहा है और न ही डिस्पोजल हो रहा है। अधिकांश मैस वाले खाने के वेस्टेज को गुपचुप तरीके से आसपास के नालों अथवा खाली भूखंडों में डाल रहे हैं।

कई जगह कचरा पाइंट्स पर भी ये कचरा डाला जाता है। कुछ ही घंटों बाद ये कचरा सड़ने लगता है, जिससे काफी परेशानी होती है।  निगम ने इसके लिए स्पेशल कचरा परिवहन की व्यवस्था की थी, लेकिन ये व्यवस्था फेल हो गई।

अगले महीने जारी होंगे टैंडर
इस समस्या से निजात पाने के लिए निगम ने अब मैस से निकलने वाले कचरे से बायो गैस बनाने की योजना तैयार की है। इसके लिए नए कोटा क्षेत्र में बायो गैस प्लांट लगाने के लिए नगर निगम द्वारा अगले माह टैंडर जारी कर कंपनियों को आमंत्रित किया जाएगा।

वो ही कंपनी गैस बनाएगी और बेचेगी। बदले में निगम को एक मुश्त राशि मिलेगी। मैस संचालकों को इसके लिए कचरा उठाने और डिस्पोजल का शुल्क देना होगा।

सरकार का भी यही नियम
स्वच्छ भारत मिशन के तहत सरकार ने भी ये आवश्यक कर दिया है कि जिस प्रतिष्ठान से प्रतिदिन 50 किलो से अधिक खाद्य पदार्थों का वेस्टेज निकलता है, उन्हें उसके डिस्पोजल के लिए बायो गैस प्लांट लगाना होगा। इस नियम के तहत शहर के कई मैस आ रहे हैं। पहले चरण में ये नए कोटा क्षेत्र में लागू किया जाएगा और उसके बाद कुन्हाड़ी क्षेत्र में लागू किया जाएगा।

एक होटल में लग चुका है ये प्लांट
वर्तमान में कोटा शहर में नयापुरा क्षेत्र के एक होटल संचालक मेहुल डागा ने इस तरह की व्यवस्था खुद के स्तर पर कर रखी है। उनके यहां से प्रतिदिन 12 से 15 किलो खाद्य पदार्थ का कचरा निकलता है। जिसे इधर-उधर फेंकने की बजाय छत पर लगे प्लांट में डालकर गैस बनाई जाती है। इस कचरे से प्रतिदिन 1.5 किलो तक गैस बनती है, जिसका उपयोग वे अपने होटल में करते हैं।

संचालकों से लेंगे चार्ज
हमने शहर की सभी मैस से निकलने वाले कचरे से निजात पाने और उसका उपयोग करने के लिए ये योजना बनाई है। इसके तहत जो फर्म टेंडर लेगी, प्लांट भी उसी कंपनी को लगाना होगा। मैस के संचालकों को कचरा उठाने और डिस्पोजल का चार्ज देना होगा।
– डॉ. विक्रम जिंदल, आयुक्त, निगम