राजस्थान की मंडियों में लगेंगी फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट

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बूंदी। प्रदेश की कृषि उपज मंडियों में खाली पड़ी जमीनों को कृषि प्रसंस्करण एवं कृषि व्यवसाय प्रोत्साहन इकाइयों के लिए आवंटन का फैसला स्थानीय कलेक्टर की अध्यक्षता वाली कमेटी करेंगी। प्रदेश में जिन जिन मंडियों में खाली जमीन पर इकाइयों के लिए आवेदन प्राप्त हुए हैं, उनको जमीन आवंटन लॉटरी, प्रसंस्करण कार्य की उपयोगिता व आवेदक की फाइनेंशियल स्थिति देखने के बाद कमेटी करेगी।

दो साल में प्रसंस्करण इकाई नहीं लगाने पर जमीन आवंटन निरस्त कर दिया जाएगा। कांग्रेस सरकार के समय भी 2012-13 में कृषि मंडियों की जमीनों के आवंटन के लिए आवेदन आमंत्रित किए गए थे और कुछ में जमीनें आवंटित भी की गई थी।

इसके बाद कोर्ट के वाद नहीं बढ़े, इसके लिए भाजपा सरकार ने इस नीति को चालू रखा और अचल संपत्ति नीति में संशोधन कर आवंटन का अधिकार मंडी और लोकल स्तर कलेक्टर की कमेटी पर हस्तांतरित कर दिया। एक फरवरी 2018 से संशोधित नीति लागू होने से प्राप्त आवेदनों पर इन दिनों स्थानीय स्तर पर प्राप्त आवेदनों के अनुसार प्रसंस्करण इकाई के लिए जमीन की लॉटरी प्रक्रिया चल रही है।

इसके तहत लॉटरी में जगह पाने वाले आवेदक को सरकारी आरक्षित दरों पर जमीन आवंटन का नियम है। एक इकाई के लिए अधिकतम 2 हजार वर्गगज तक जमीन आवंटन का नियम है, जिस पर 2 साल में फैक्ट्री लगानी होगी। कुछ जगह इसका विरोध शुरू हो गया है। कई जगह किसानों और दुकानदारों का कहना है कि कृषि प्रसंस्करण उद्योग के लिए भी मंडियों की जमीन नहीं बेची जा सकती।

कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी ने कहा कि गहलोत सरकार के टाइम बड़ी संख्या में प्रसंस्करण इकाइयों के लिए आवेदन मांगे गए थे। हम तो 2 साल में प्रसंस्करण उद्योग नहीं लगाने पर जमीन छीन लेंगे। कलेक्टर की कमेटी फिर लॉटरी निकालेगी। लेकिन दूसरी तरफ कुछ मंडियों में इसका विरोध भी है।

मंडी समितियां तैयार नहीं
मंडी समितियों को सरकार का यह फैसला रास नहीं आ रहा। वे नहीं चाहती कि मंडियों की जमीनें खुर्द-बुर्द हों। सूत्रों के मुताबिक मंत्री स्तर से दबाव इतना ज्यादा है कि कई अधिकारी इन दिनों तनाव में हैं। ज्यादातर मंडी प्रशासक और मंडी सैक्रेटरी अलॉटमेंट फाइलों पर साइन को तैयार नहीं, ऐसे अधिकारियों पर मंत्री स्तर से भारी दबाव डाला जा रहा है। उन्हें एपीओ करने तक की चेतावनी दी जा रही है।

दबाव के बावजूद कुछ मंडी अधिकारियों ने हौसला जुटाकर नियम-कायदों का हवाला देते हुए फैक्ट्री मालिकों को मंडी की जमीनें अलॉट नहीं करने बात सरकार तक पहुंचाई भी है। सूत्रों ने बताया कि एक मंडी सैक्रेटरी को साइन नहीं करने पर जयपुर बुलाकर जबरन छुट्टी की अर्जी पर साइन करा लिए गए। अलॉटमेंट फाइलों पर हस्ताक्षर के लिए पसंद का अधिकारी लगा दिया पर फाइलें मंडी प्रशासक ने रोक ली।

संभाग की 6 मंडियों में जमीन अलॉट करने की फाइल तैयार: कोटा संभाग में बूंदी, बड़ानया गांव, बारां, अटरू, छबड़ा, मंडाना मंडियों में फैक्ट्री मालिकों को जमीनें अलॉट करने की फाइलें तैयार हो चुकी हैं। बूंदी में कुंआरती मंडी और बड़ा नयागांव की मटर मंडी में फैक्ट्रियां लगाने के लिए 7 उद्योगपतियों ने फाइल लगाई है। मटर मंडी में जगह बहुत कम है। बूंदी मंडी के लिए पांच, मटर मंडी के लिए दो फाइल आई हैं। बूंदी के एक, बाकी उदयपुर, बीकानेर, जयपुर के उद्यमी हैं।