एयरसेल-मैक्सिस को FIPB मंजूरी देने की साजिश में शामिल थे पी. चिदंबरम

747

नई दिल्ली। एयरसेल-मैक्सिस डील में नियमों के कथित उल्लंघन और भ्रष्टाचार के मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम पर गंभीर आरोप लगाए हैं। सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए अपने हलफनामे में ED ने आरोप लगाया है कि एयरसेल-मैक्सिस को FIPB (विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड) से मंजूरी देने की ‘साजिश’ में पी. चिदंबरम भी शामिल थे।

ईडी ने कहा है कि साजिश के तहत तथ्यों को छिपाया गया ताकि मामले को आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति के पास न भेजना पड़े और वित्त मंत्रालय से ही मंजूरी दे दी गई। हलफनामे में ED ने FIPB के तत्कालीन सेक्रटरी, अडिशनल सेक्रटरी, डेप्युटी सेक्रटरी और अंडर सेक्रटरी समेत बड़े अधिकारियों पर सवाल उठाए हैं, जो एजेंसी के मुताबिक ‘साजिश’ में शामिल थे।

चिदंबरम और उनके बेटे कार्ति इस पर कायम हैं कि ईडी के साथ-साथ सीबीआई की तरफ से उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोप बेबुनियाद हैं और विपक्ष की आवाज को खामोश करने के लिए मोदी सरकार ऐसा करा रही है।

अपने हलफनामे में ED ने कहा है कि एयरसेल ने 2006 में 3,500 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को लाने के लिए इजाजत मांगी थी लेकिन वित्त मंत्रालय ने इन आंकड़ों को कम करके दिखाया।

ईडी के मुताबिक वित्त मंत्रालय ने मामले को आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति के पास जाने से बचाने के लिए दिखाया कि एयरसेल ने सिर्फ 180 करोड़ रुपये की FDI के लिए इजाजत मांगी है। उस समय लागू नियमों के मुताबिक 600 करोड़ रुपये तक के विदेशी निवेश को वित्त मंत्री FIPB के जरिए मंजूरी दे सकते थे।

ED का हलफनामा उसकी तरफ से सुप्रीम कोर्ट में एयरसेल-मैक्सिस केस की जांच को लेकर दाखिल किए गए स्टेटस रिपोर्ट का हिस्सा है। कोर्ट में शुक्रवार को इस मामले की सुनवाई होनी है। ED ने आरोप लगाया है कि एयरसेल को FIPB से मंजूरी मिलने के एवज में पूर्व वित्त मंत्री के बेटे कार्ति चिदंबरम को 11 अप्रैल 2006 को 26 लाख रुपये दिए गए।

ED के हलफनामे ने पी. चिदंबरम को कथित FIPB स्कैम की तेज होती जांच के केंद्र में खड़ा कर दिया है। यहां यह बात महत्वपूर्ण है कि प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग ऐक्ट (PMLA) के तहत अधिकारियों के बयानों को कोर्ट में सबूत के तौर पर मान्यता है। इस मामले की भी PMLA के तहत ही जांच हो रही है।

ED ने हलफनामे में दावा किया है कि उसने मामले की जांच के सिलसिले में मई 2014 से 2009 और अगस्त 2012 से मई 2014 के बीच की FIPB से जुड़ी 2,721 फाइलों को खंगाला है। इनमें से एयरसेल केस समेत 54 ऐसी फाइलों पर ED ने फोकस रखा है, जिन्हें पी. चिदंबरम ने मंजूरी दी थी।

ईडी ने जुलाई 2016 से अक्टूबर 2016 के बीच FIPB के अधिकारियों से पूछताछ का पहला चरण पूरा किया था। FIPB के तत्कालीन अंडर सेक्रटरी राम शरण और डेप्युटी सेक्रटरी दीपक सिंह से ईडी ने गहन पूछताछ की थी और उनके बयानों को दर्ज किया था।

हलफनामे के मुताबिक FIPB अधिकारियों ने बताया कि 80 करोड़ डॉलर (3,500 करोड़ रुपये से ज्यादा) का निवेश हुआ था और कायदे से यह मामला आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति के पास जाना चाहिए था।

लेकिन साजिश के तहत यह दिखाया गया कि सिर्फ 180 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश को मंजूरी के लिए इजाजत मांगी गई है और तत्कालीन वित्त मंत्री ने उसे मंजूरी दे दी, जबकि उन्हें इसका अधिकार नहीं था।