देश की प्रथम पीठ मथुराधीश मंदिर में भक्ति भाव से मनाया प्राकट्य महोत्सव

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कोटा। पुष्टिमार्ग की देश की प्रथम पीठ पाटनपोल नंदग्राम स्थित मथुराधीशजी मंदिर में सोमवार को प्राकट्य महोत्सव धूमधाम से मनाया गया। ठाकुरजी के जयकारों के बीच होली के गीतों की बही रसधार में भक्ति के रंगों की बोछार ने माहौल मस्तीभरा कर दिया। दक्षिण भारत, गुजरात, उत्तर प्रदेश व राजस्थान की संस्कृति का समागम भी देखने को मिला।

बड़े मथुरेश जी टेंपल बोर्ड कोटा की ओर से आयोजित इस उत्सव में प्रभु संग श्रद्धालु भक्ति में रंगों में डूबे नजर आए। नंदग्राम मथुराधीषजी के जयकारों के गूंजायमान हो उठा। प्रथम पीठाधीश्वर गोस्वामी मिलन कुमार बाबा ने बताया के सुबह 11.30 बजे राजभोग दर्शन के बाद श्रदालु अबीर गुलाल व पानी की होली खेली गई।

दूर दराज से आए श्रद्धालुओं ने इस उत्सव में भक्तिभाव से भाग लिया। शाम को ठाकुर जी के दरबार में दर्शन कराए गए। इस लीला में ठाकुरजी को नजर से बचाने का जतन किया जाता है। ठाकुरजी के नजर ना लगे इसके लिए रार से नजर उतारी जाती हैं।

उन्होंने बताया कि फाल्गुन मास की बसंत पंचमी ऋतु  मथुराधीश के भक्तों के लिए अति आनंददायी होती हैं। बसंत पंचमी से दौलोत्सव तक अत्यंत आनंद भाव के साथ वज्र भक्त प्रभु के साथ स्वामी भाव को गौण करके सखा भाव से भक्ति में रंगों में खेलते हैं। इस आध्यात्मिक क्रीड़ा में ब्रह्म जीव एक नजर आते हैं।

प्रभु भी अपने भक्तों के साथ वसंत, धमाल, फाग और होली के खेल खेलते हैं। यह चारों लीलाएं दस-दस दिवस के क्रम में 40 दिन तक चलती हैं। होली खेल का यह उत्सव पुष्टि संप्रदाय में विशेष रूप से मनाया जाता है। पुष्टि संप्रदाय में राजस्थान, उत्तर प्रदेश एवं भारतीय दक्षिण प्रदेश की संस्कृति का मिश्रण दिखता है।

पहले बूंदी ठहरे और फिर कोटा पधारे ठाकुरजी
मिलन बाबा के अनुसार, पुष्टि संप्रदाय के संस्थापक महाप्रभु वल्लभाचार्य थे तो दक्षिण संस्कृति का होना स्वाभाविक है। पुष्टि संप्रदाय की सेवा साधना व्रज प्रणाली के अनुसार होने से उत्तर प्रदेश की संस्कृति समाहित हुई। कालांतर में व्रज से प्रभु जी राजस्थान पधारें। पहले बूंदी में ठहरे ओर फिर कोटा पधारे ओर तब से कोटा में ही विराजमान है।

इस तरह राजस्थान की संस्कृति का भी समाधान हो गया। गुर्जर संस्कृति भी नजरअंदाज नहीं कर सकते। क्योंकि गुजरात प्रदेश में इस संप्रदाय का अत्यधिक प्रभाव है। इस तरह अलग-अलग प्रदेशों की संस्कृति का समागम प्रभु की भक्ति भाव में नजर आता है।

सात ताड के पेड के बराबर अवतरित हुए थे मथुराधीश
मिलन बाबा के अनुसार, भगवान मथुराधीश जी का प्राकट्य कुंज एकादशी को करणावल ग्राम मथुरा में हुआ। तब मथुराधीश जी का स्वरूप सात ताड़ के पेड़ के बराबर लंबा था। और महाप्रभु जी को सेवा करने की आज्ञा दी।

तब महाप्रभु जी ने कहा इतने लंबे स्वरूप की सेवा करना साधारण मनुष्य के सामर्थ्य में नहीं है। ऐसे में महाप्रभुजी के आग्रह पर 28 अंगुल का स्वरूप धारण किया। ओर मथुराधीशजी का यही स्वरूप कोटा में विराजमान है जो देश दुनिया में पुष्टिमार्ग की प्रथम पीठ है।