भारत में करप्‍शन रोक रहा विदेशी निवेशकों की राह : क्रॉल

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नई दिल्‍ली। विदेशी निवेशकों के लिए करप्‍शन अभी भी एक बड़ा चैलेंज बना हुआ है, जब वो भारत में निवेश का फैसला करते हैं। अमेरिकी रिस्‍क मैनेजमेंट कंपनी क्रॉल का कहना है कि विदेशी निवेशक करप्‍शन के अलावा कॉरपोरेट गवर्नेंस और एसेट की सिक्‍युरिटी से जुड़े रिस्‍क को भी निवेश करते समय अहम मुद्दा मानते  हैं।

 क्रॉल के अनुसार, 2014 में स्‍थायी सरकार आने के बाद ग्‍लोबल निवेशकों को उम्‍मीद थी कि भारत में बिजनेज के तरीके में बड़ा बदलाव आएगा लेकिन उनकी उम्‍मीद के अनुसार ऐसा कुछ नहीं हुआ। बता दें क्रॉल न्‍यूयार्क बेस्‍ड कंपनी है। 
 
निवेश के फैसले पर इन चीजों का असर 
विदेशी निवेशकों के निवेश के फैसले को कई बातों ने प्रभावित किया है। इसमें सरकार के रेट्रोस्‍पे‍क्टिव एक्‍शन खासकर टैक्‍स से जुड़े मामले में।

वहीं, अधिक  बेरोजगारी के चलते सोशल अनरेस्‍ट, राज्‍य स्‍तर की राजनीति और बैंकिंग सिस्‍टम में कैपिटल की दिक्‍कत जैसी बातों ने विदेशी निवेशकों के फैसले को प्रभावित मोदी सरकार आने के बाद क्‍या भारत में रिस्‍क कम हुआ है, इस सवाल के जवाब में क्रॉल के एमडी तरूण भाटिया का जवाब पॉजिटिव था लेकिन उनका मानना था कि और बहुत कुछ हो सकता था।

भाटिया ने बताया, ”मौजूदा सरकार अपने किए वादों के आधार पर सत्‍ता में आई। ग्‍लोबल निवेशक भारत में बिजनेस करने को लेकर बड़े बदलाव की उम्‍मीद कर रहे थे। दुर्भाग्‍यवश, उम्‍मीदों के अनुरूप ऐसा नहीं हुआ। कई रिफॉर्म्‍स किए गए, जिससे सरकार के मजबूत इरादे दिखाए दिए। हालांकि अभी तक इनका परीक्षण नहीं हो पाया है।”

भाटिया आगे कहते हैं, भारत में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस के मुद्दे पर सरकार का रूख सकारात्‍मक दिखाई दे रहा है। नोटबंदी, जीएसटी जैसे फैसले लिए गए, जिनका सप्‍लाई चेन पर असर होगा। वहीं, डिजिटाइजेशन को बढ़ाने से बिजनेस ऑपरेट करना आसान हुआ है। 
 
करप्‍शन के चलते 20% निवेशक नहीं आए 
साल के शुरू में जारी हुई क्रॉल की ग्‍लोबल फ्रॉड रिपोर्ट के अनुसार, करीब 20 फीसदी विदेशी निवेशक या कंपनियां करप्‍शन, कॉरपोरेट गवर्नेंस और एसेट से जुड़े रिस्‍क के चलते भारत में बिजनेस से दूर रहीं। ट्रांसपरेंसी इंटरनेशनल सर्वे की ओर से जारी रिपोर्ट के अनुसार, एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ब्राइबरी रेट भारत में सबसे ज्‍यादा रहा।

रिपोर्ट के अनुसार, दो-तिहाई भारतीयों को अपने काम कराने के लिए सरकारी सर्विसेज के लिए घूस देनी पड़ी। सर्वे में यह पाया गया कि भारत में 69 फीसदी और वियतनाम में 65 फीसदी लोगों को घूस देना पड़ा। चीन में यह आंकड़ा महज 26 फीसदी है जबकि पाकिस्‍तान में 40 फीसदी था। 
 
ईज ऑफ डूइंग में 30 पायदान सुधरी रैंक 
इस बीच, राहत की बात यह रही है कि वर्ल्‍ड बैंक ने ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में भारत की रैंक 100वीं कर दी। 2016 के मुकाबले भारत की रैंकिंग 30 पायदान सुधरी है। वहीं, ग्‍लोबल क्रेडिट रेटिंग एजेंसी मूडीज ने भी भारत की सॉवरेन रेटिंग Baa3′ से बढ़ाकर ‘Baa2’ कर दी।

साथ ही आउटलुक स्‍टेबल से पॉजिटिव कर दिया। मूडीज ने 13 साल बाद भारत की रेटिंग में यह बढ़ोत्‍तरी की। हालांकि, एक रेटिंग एजेंसी स्‍टैंडर्ड एंड पुअसर ने भारत की रेंटिंग लोवर इन्‍वेस्‍टमेंट ग्रेड ‘बीबीबी-‘ पर बरकरार रखी। एसएंडपी का कहना था कि सरकार पर कर्ज ज्‍यादा इनकम लेवल लो है। 
 
रेरा, GST का होगा पॉजिटिव असर
क्रॉल के अनुसार, अन्‍य विकसित और विकासशील देशों के मुकाबले भारत में स्थिर सरकार और बेहतर संभावना के चलते विदेशी निवेशक यहां आ सकते हैं। वहीं, इन्‍सॉल्‍वेंसी एंड बैकरप्‍सी कोड, रीयल एस्‍टेट रेग्‍युलेटरी एक्‍ट (रेरा), गूड्स एंड सर्विसेज टैक्‍स  जैसे रिफॉर्म्‍स ईज ऑफ डूइंग बिजेनस को बेहतर बनाएंगे। इनसे भारत की रेटिंग भी अपग्रेड हो सकती है।