राजस्थान में सत्ता विरोधी लहर, आसान नहीं है वसुंधरा राजे की राह

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-दिनेश माहेश्वरी
कोटा। गुजरात में हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों के परिणाम वसुंधरा राजे की अगुआई वाली राजस्थान की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के लिए शुभ संकेत नहीं हैं। राजे सरकार जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर और भरोसे के संकट का सामना कर रही है।

राज्य में पार्टी के नेताओं ने गुजरात में आसान जीत की उम्मीद की थी जिससे राजस्थान में अगले वर्ष नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए उनकी राह आसान हो जाती। लेकिन गुजरात में मिली करीबी जीत से उनके हाथपांव फूल गए हैं। भाजपा के नेता मानते हैं कि गुजरात की तुलना में राजस्थान में कांग्रेस मजबूत विपक्ष है। पिछले दो साल में उसने राजे सरकार की नाक में दम कर रखा है।

भाजपा के वरिष्ठï नेता राजस्थान की ऐतिहासिक प्रवृत्ति से भी चिंतित हैं। राज्य में कम से कम पिछले दो दशक से किसी भी पार्टी ने लगातार दो चुनाव नहीं जीते हैं। राजनीतिक नेताओं और विश्लेषकों का कहना है कि राजे की जीत तीन कारकों पर निर्भर करेगी। पहला कारक यह होगा कि अगले 6 महीनों में उनकी क्या रणनीति होगी।

सूत्रों का कहना है कि राजे पहले ही चुनाव की मुद्रा में आ गई हैं और उन गलतियों को नहीं दोहराना चाहती हैं जो उन्होंने अपने पिछले कार्यकाल (2003 से 2008) में की थी। 2008 के चुनावों में कांग्रेस ने 200 में से 96 और भाजपा ने 78 सीटें जीती थीं। 2013 में मोदी की लहर पर सवार भाजपा ने 163 सीटें हासिल की जबकि कांग्रेस के खाते में मात्र 21 सीटें ही आईं।

राजे के करीबी पार्टी के एक शीर्ष नेता ने कहा, ‘हम थोड़ा आत्मसंतुष्ट हो गए थे, वर्ना हम 2008 में भी चुनाव जीत जाते। इस बार हम कोई कसर नहीं छोडऩा चाहते हैं।’ अलबत्ता भाजपा नेताओं का मानना है कि राजस्थान में उनके सामने कड़ी चुनौती है। भाजपा नेता ने कहा, ‘राजस्थान में पार्टी की जीत आसान नहीं होगी।’ क्योंकि डॉक्टर्स हड़ताल और राज्य कर्मचारियों का असंतोष भी राजे सरकार के लिए खतरे की घंटी है। 

पार्टी की इन आशंकाओं की वजह यह है कि राजे सरकार के खिलाफ जबरदस्त सत्ता विरोधी लहर है। किसानों सहित अधिकांश वर्ग सरकार से नाराज हैं। किसान चाहते थे कि उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र की भाजपा सरकारों की तर्ज पर राजस्थान सरकार को भी उनका ऋण माफ करना चाहिए लेकिन उसने इस पर चुप्पी साध रखी है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) और नोटबंदी से उपजी समस्याओं के कारण व्यापारी और दुकानदार भी सरकार से नाराज चल रहे हैं।

 
अलबत्ता राजे सरकार का मानना है कि सामाजिक कल्याण योजनाओं और सार्वभौमिक स्वास्थ्य बीमा योजना के दम पर वह सत्ता में वापसी करेगी। इन योजनाओं में भामाशाह योजना भी शामिल है जिसका मकसद गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे परिवारों (बीपीएल) की महिलाओं का सशक्तीकरण करना है।

लेकिन भाजपा की सत्ता में वापसी इस बात पर निर्भर करेगी कि राजे अपने अंतिम बजट में क्या घोषणा करती हैं। राज्य की वित्तीय स्थिति पर नजर डालें तो साफ है कि सरकार के पास रेवडिय़ां बांटने के लिए पर्याप्त फंड नहीं है। वर्ष 2016-17 में राज्य सरकार का सार्वजनिक ऋण (बिजली कंपनियों के लिए उदय योजना के बिना) 25,290 करोड़ रुपये था। 

वर्ष 2015-16 में यह 23,478 करोड़ रुपये था। अगर उदय योजना को भी मिला लिया जाए तो राज्य सरकार का सार्वजनिक ऋण 2016-17 में 47,663 करोड़ रुपये था। उदय योजना के तहत राज्य सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों का कर्ज अपने ऊपर ले लिया था।

भाजपा के एक नेता ने कहा, ‘राजे सरकार को विरासत में कांग्रेस से भारी कर्ज मिला था और इससे निपटने के लिए उसे अब भी संघर्ष करना पड़ रहा है। इस समय रेवडिय़ों की घोषणा करना वित्तीय रूप से सही नहीं है लेकिन सरकार और पार्टी में एक वर्ग का मानना है कि मतदाताओं को रिझाने के लिए बजट में लोकलुभावन घोषणा करना बुद्घिमानी होगी।

अगर कांग्रेस सत्ता में आती है तो वह केवल कर्ज बढ़ाएगी।’ राजे ने अपनी रणनीति का खुलासा नहीं किया है और वह अपने पत्ते फेंकने के लिए सही समय का इंतजार कर रही हैं। उन्होंने मतदाताओं का मन टटोलने के लिए राज्य का दौरा शुरू कर दिया है। राजे सरकार की सफलता में दूसरा कारक नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार की लोकप्रियता है।

भाजपा के एक पदाधिकारी ने कहा, ‘अगर मोदी सरकार केंद्र में मजबूत बनी रहती है तो हम आधी लड़ाई जीत जाएंगे।’ अगर मोदी गुजरात की तरह राजस्थान में भी व्यापक प्रचार करते हैं तो वह राजे सरकार के लिए समर्थन जुटा सकते हैं। लेकिन मोदी के दिल्ली में ही व्यस्त रहने की संभावना है क्योंकि उन्हें 2019 के आम चुनावों की तैयारी करनी है।

तीसरा कारक भाजपा और कांग्रेस का आंतरिक कलह होगा। राजे को पार्टी के भीतर अपने विरोध को दूर करने की जरूरत है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से करीबी रखने वाले कुछ विधायकों ने खुलमखुल्ला राजे का विरोध किया है। हालांकि राजे ने दिल्ली में पार्टी आलाकमान के साथ अच्छे संबंध बनाने में सफलता पाई है लेकिन फिर से मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनने के लिए उन्हें मशक्कत करनी पड़ेगी।

भाजपा की सफलता कांग्रेस के आंतरिक कलह पर भी निर्भर करेगी। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर कांग्रेस अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करती है तो भाजपा के लिए मुश्किल होगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि गहलोत को सभी जातियों में लोकप्रिय माना जाता है।