पांच करोड़ तक टर्नओवर वाले उद्योग माइक्रो कहलाएंगे

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नई दिल्ली। सरकार माइक्रो, स्मॉल, मीडियम इंटरप्राइजेज (एमएसएमई) की नई परिभाषा तैयार कर रही है। यह निर्धारण टर्नअोवर के आधार पर होगा। अभी प्लांट मशीनरी में होने वाले निवेश के आधार पर तय होता है कि कौन सी यूनिट माइक्रो, स्मॉल या मीडियम कहलाएगी।

फिलहाल माइक्रो यूनिट की श्रेणी में उन यूनिट को रखा जाता है जहां प्लांट मशीनरी में 25 लाख रुपए से कम का निवेश हुआ हो। स्मॉल वो होते हैं जिनके प्लांट-मशीनरी में 25 लाख रुपए से लेकर 5 करोड़ रुपए से कम निवेश हुआ हो। 5 करोड़ से अधिक लेकिन 10 करोड़ से कम निवेश होने पर उसे मीडियम यूनिट की श्रेणी में रखा जाता है।

फेडरेशन ऑफ स्मॉल, मीडियम इंटरप्राइजेज (फिस्मे) के पदाधिकारियों ने बताया कि इस कदम से सरकार और उद्यमी दोनों को फायदा होगा। अभी अनेक उद्यमी ऐसे हैं जिनका कारोबार तो बढ़ गया है, लेकिन वह माइक्रो श्रेणी में ही हैं।

इसी तरह अनेक उद्यमी ऐसे भी हैं जो निवेश के आधार पर स्मॉल श्रेणी में है, लेकिन उनका कारोबार कम हो गया है। नए वर्गीकरण से सरकार को फायदा यह होगा कि उसे टैक्स ज्यादा मिलेगा। जीएसटी की व्यवस्था में उसे सबके बिजनेस की जानकारी होगी।

बहस की गुंजाइश : फोर्टी
फैडरेशनआॅफ राजस्थान ट्रेड एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल के अनुसार एमएसएमई की नई परिभाषा पर बहस की काफी गुंजाइश है।

अभी मौजूद नियम इनकी निवेश सीमा से जुड़े हैं और अब नए स्वरूप में टर्नओवर की परिभाषा लागू हाेने से 15 फीसदी इंडस्ट्री एमएसएमई के दायरे से बाहर हो जाने के आसार हैं। दुनिया में लेबर बेस्ड है एमएसएमई का फार्मूला, ऐसे में इस बारे में अभी और गहन विचार-विमर्श जरूरी है।

दो वर्ष से लंबित है मामला : एलबीयू
लघु उद्योग भारती के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष योगेश गौतम के अनुसार यह मामला दो साल से लंबित है और अब इसे टर्नओवर के आधार पर परिभाषित करने से हमारी एक मांग पूरी हो रही है।

ऐसे होगा नया वर्गीकरण

  • 5 करोड़ रुपए तक सालाना कारोबार वाले माइक्रो श्रेणी में आएंगे।
  • 5-50 करोड़ तक बिजनेस वालों को स्मॉल श्रेणी में रखा जाएगा।
  • 50-100 करोड़ रुपए तक के कारोबारियों मीडियम श्रेणी में होंगे।

कारोबारियोंको फायदा
-सरकार माइक्रो उद्यमियों को नई मशीनरी की खरीदारी पर 15 फीसदी तक छूट देती है।
-आधुनिकीकरण में भी माइक्रो उद्यमियों को इन्सेंटिव मिलता है।
– बैंकों को कर्ज का निश्चित हिस्सा एमएसएमई को देना पड़ता है। ज्यादा कारोबारी इसके दायरे में आएंगे।