अब सिर्फ होगा प्यार ही प्यार, वैज्ञानिकों ने विकसित किया ‘लव हॉर्मोन’

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मेलबर्न। हर दिन बढ़ते काम के प्रेशर और दिनों दिन बढ़ते तनाव की वजह से इंसान के जीवन से प्यार कम होता जा रहा है जिसकी वजह से परिवार में लोगों के बीच दूरियां बढ़ रही हैं। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस समस्या का हल निकाल लिया है।

अनुसंधानकर्ताओं ने इंसान के शरीर में पाए जाने वाले लव हॉर्मोन ऑक्सिटॉक्सिन का कृत्रिम वर्जन तैयार किया जिसका कोई साइड इफेक्ट नहीं है। यह हॉर्मोन लेबर पेन को नियंत्रित कर हमारे मौलिक सामाजिक व्यवहार जैसे मातृ देखभाल, साझेदारी संबंध, सामाजिक संपर्क, तनाव और चिंता की प्रतिक्रिया देता है।

ऑस्ट्रेलिया के यूनिवर्सिटी ऑफ क्वीन्सलैंड के मार्कस मुटेनथेलर ने कहा, ‘ऑक्सिटॉक्सिन का नकारात्मक पक्ष यह है कि यह एक साथ कई सारे रिसेप्टर्स को सक्रिय कर देता है जिससे कई अवांछित साइड इफेक्ट्स भी हो सकते हैं।

उदाहरण के लिए- लेबर पेन को बढ़ाने के लिए कई बार ऑक्सिटॉक्सिन का इस्तेमाल किया जाता है लेकिन अगर इसकी हाई डोज पड़ जाए या फिर अगर लंबे समय तक इसका इस्तेमाल किया जाए तो साइड इफेक्ट के तौर पर गर्भाशय के फटने या हृदयवाहिनी संबंधित कई गंभीर समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं।’

अनुसंधाकर्ताओं की टीम ने ऑक्सिटॉक्सिन के स्ट्रक्चर में छोटे-छोटे बदलाव कर एक नया अणु विकसित किया है जो रिसेप्टर्स की सक्रियता को कम कर देता है जिससे साइड इफेक्ट भी कम होते हैं।

मुटेथेलर कहते हैं, ‘हमने जो नया यौगिक पदार्थ विकसित किया है वह ऑक्सिटॉक्सिन जितना ही प्रभावकारी है लेकिन ऑक्सिटॉक्सिन रिसेप्टर के लिए इसकी चयनात्मकता बेहतर है जिससे संभावित साइड इफेक्ट्स के खतरों को बेहद कम किया जा सकता है।

इसके इस्तेमाल से हृदय की मांसपेशियों के सेल्स सक्रिय नहीं हुए और गर्भाशय के टीशूज़ में सिकुड़न का पैटर्न नियमित रहा जिससे मां और बच्चे दोनों की बेहतर सुरक्षा के संकेत मिलते हैं।’

जर्नल साइंस सिगनलिंग में अनुसंधानकर्ताओं ने लिखा है कि ऑटिज्म, माइग्रेन, स्कीटजोफ्रीनिया, ऐग्जाइटी और स्ट्रेस जैसे हाई-प्रोफाइल बीमारियों के इलाज में भी ऑक्सिटॉक्सिन का इस्तेमाल किया जाता है। मुटेनथेलर कहते हैं, ‘यह नया यौगिक पदार्थ न सिर्फ भविष्य में होने वाले इलाज में बेहतर सहयोग कर पाएगा।

बल्कि ऑक्सिटॉक्सिन रिसेप्टर का स्वास्थ्य और बीमारियों में जो रोल है उसे भी बेहतर तरीके से समझा जा सकेगा। साथ ही इसमें साइड इफेक्ट भी कम है जिससे चिंता, आत्मकेंद्रित और दूसरे सामाजिक डर में कोई इजाफा नहीं होता।’