अपना वंश बंसीवाला, उससे अटूट रिश्ता बना लो

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करूणावतार की जिस कथा में करूणा नहीं, वह कथा न होकर दादी-नानी की कहानी मात्र है

अरविंद, कोटा। जब हम बंसीवाले की कथा में बैठते हैं तो उसके कुटुम्ब के हो जाते हैं। हम रहते संसार में हैं लेकिन एक रिश्ता परम पिता से जुड़ जाता है। जब कभी अपनों से नहीं बन रही हो तो इस अटूट रिश्ते को निभा लो।

अपनी कमाई का कुछ अंश पुण्यार्थ में अवश्य लगाओ। हमेशा महसूस करो कि आनंद आकाश से बड़ा, कथा व्यथा से बड़ी और पुरूषार्थ पाप से बड़ा होता है। पाप कितना भी बड़ा हो, वह पुण्य से दबता है, इसलिए पुण्य ज्यादा कमाओ।

कोटा-चितौड़गढ़ मार्ग पर कल्याणपुरा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के षष्टम सोपान में शनिवार को दिव्य गौसेवक संत पं.कमलकिशोर ‘नागरजी’ ने कहा कि एक पिता अपनी बेटी को अच्छे घर में देने के लिए आतुर रहता है, वैसे ही अपनी अंतरआत्मा को सच्चिदानंद के श्रीचरणों में जाने से लिए सोचो।

हम हाय-हाय करते बूढे़ हो गए लेकिन इतना ही हरि-हरि करते तो उसके बहुत निकट हो जाते। एक बुआ छोटे बालक को कोई कुल्फी दिला दे तो उससे वह कितना खुश हो जाता है, हमें तो ईश्वर ने बहुत कुछ दिया है, फिर हम उसे क्यों भूल रहे हैं।

मधुर भजन सुनाते हुए उन्होंने कहा कि सगुण जीवन (शरीर) प्रभु से निकटता देता है। आप मंदिर में मूर्ति के सहारे, माला के सहारे मंत्रों को जप कर लो, क्योंकि मंत्र से श्री यानी तेज हमारे भीतर आता है। मन में विकार या भ्रम आने पर वह मन की चंचलता खत्म कर देता है और निर्गुण मृत्यु सुधार देता है।

हमेशा ‘भगवान बहुत दयालु है’ कहते रहो। क्यांंकि वह करूणावतार है। आप छोटे हों या बडे़, जब वंश की बात आए तो मान लो, अपना वंश बंसीवाला है, हम इसके हैं, वो हमारा है। एक बार इस अटूट रिश्ते को हृदय में बसाकर देखो।

आज भक्ति के आंसू सूख रहे
आज धर्म, संस्कृति और सामाजिक परिवेश मे आ रही गिरावट पर उन्होंने कहा कि आज निरंतरता टूटने से हमारी आंखों में भक्ति के आंसू सूख गए, इसीलिए जहां हम हैं वहां करूणा रस नहीं बरसता।

करूणावतार की जिस कथा में करूणा नहीं, वह कथा न होकर दादी-नानी की कहानी मात्र है। गोपियां कृष्ण के वियोग में दुखी नहीं थी, वे विरही थीं, इसलिए गिरधर उन्हें मिले। सच्ची विरह-वेदना जहां होगी, करूणावतार वहां अवश्य आते हैं।

अच्छा पहनावा अच्छी राह दिखाएगा
गौसेवक संत नागरजी ने कहा कि हम चैतन्य से जड़ को खोजने लगे हैं। गाड़ी, बंगला, धन-वैभव वगैरह जड़ हैं, ये सब मुखौटे है। हम अपनी भक्ति से चैतन्य को पा लेते तो बात कुछ और हो जाती। उसने हमें सब कुछ दिया लेकिन हम अपंने भीतर उसको खोजना ही भूल गए। जितना हो सके भक्ति की राह पर लौट आओ।

कलियुग में हम विरासत की धर्म-संस्कृति को छोड़ पाश्चात्य संस्कृति पर चलने लगे। यही भटकाव है। याद रखें, प्रेमिका संताप दे सकती है, अच्छी संतान नहीं दे सकती। इसीलिए पुरखों ने पत्नी को मर्यादा से धर्मपत्नी कहा।

महिलाओं के पहनावे पर उन्होंने कहा कि मंदिर में कभी ऊँचे कपडे़ पहनकर मत जाओ, इससे प्रतिमा की श्री (आभा) चली जाती है। परिवार में फैशन के तंग या उंचे कपड़े मत पहनो, इससे माता-पिता का धर्म नष्ट होता है। अच्छा पहनावा हमें अच्छाई की ओर ले जाएगा। कथा का समापन रविवार को होगा।