‘असली-नकली फूल को पहचानना हम भूल रहे- पं.नागरजी’

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सांसारिक जीवन में जिसके पीछे हम दौड रहे हैं, ये प्लास्टिक के बनावटी फूल हैं। इनमें दिखावे की सुंदरता है लेकिन सुगंध नहीं आ सकती।

अरविंद, कोटा। हम असली-नकली फूल को पहचानने में भूल कर रहे हैं जबकि भंवरा असली फूल को पहचानने में कभी भूल नहीं करता। जहां सुगंध हो, वहां पहुंचकर वह रस लेता है।

हम अपने अंतःकरण को शुद्ध नहीं कर पाए, इसलिए असली तक नहीं पहुंच पाए। सांसारिक जीवन में जिसके पीछे हम दौड रहे हैं, ये प्लास्टिक के बनावटी फूल हैं। इनमें दिखावे की सुंदरता है लेकिन सुगंध नहीं आ सकती।

कोटा-चितौड़ मार्ग पर कल्याणपुरा में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के पंचम सोपान में शुक्रवार को दिव्य गौसेवक संत पं.कमलकिशोर ‘नागरजी’ ने कहा कि जनता जागृत हो जाए, तो पाखंड चला जाएगा।

आज सनातन धर्म में कई विकृतियां आ रही हैं। यदि कोई व्यवसाय समझकर धर्म क्षेत्र में आ गए, तो खुद भंवरा बनकर स्वविवेक से उन्हें पहचानो। जहां चैतन्य पुरूष होंगे वहां ज्ञान और ब्रह्मतत्व की सुगंध अवश्य मिलेगी।

शास्त्रों में कहा है कि अष्टदल कमल जब खिलता है, तो वह खूशबू छोड़ता है। अष्ट कमल में चरण कमल, नाभि, हृदय, हस्त, मुख, नेत्र, शीष एवं अष्टदल कमल होते हैं।  भगवत चिंतन पर उन्होंने कहा कि धर्म में सिर्फ एक जाति हो-मनुष्य जाति। सारे भेदभाव खत्म हो जाएंगे।

गुरू तत्व जाति नहीं देखता, जो पात्र है, शुद्ध है, आज्ञाकारी है, उसकी उर्जा उसे छेड़ती है। हृदय विशुद्ध है तो गुरू तत्व उसके पास आएगा। परम तत्व जहां हो, वहां आह भरकर सांसों में उतार लो, आप खुद तर जाओगे। दशम स्कंध में कहा है- कृष्णम वंदे जगद्गुरू।

ऐसे में ईश्वर ही गुरू-गोविंद दोनों बन जाते हैं। जहां लिखा हो 100 प्रतिशत शुद्ध है, समझो वह अशुद्ध है। क्यांकि जहां शुद्धि हो, उसका प्रचार नहीं होता। शुक्रवार को हाड़ौती से बड़ी संख्या में श्रद्धालु कथा सुनने पहुंचे।

आश्रम और पॉल्ट्रीफॉर्म में अंतर है
धर्म और आस्था के क्षेत्र में आ रही विकृतियों पर उन्होंने व्यथित भाव से कहा कि गुरू परमतत्व हवा की तरह है। हवा बगीचे में चले तो सुगंध फैलाती है लेकिन पॉल्ट्रीफॉर्म में चले तो दुर्गंध फैलाती है।

उसके पास गुजरते हुए हम नाक बंद कर लेते हैं। आज तो आश्रमों में विकृतियों देख हम कान भी बंद कर लेते हैं। जहां चैतन्य पुरूष और ब्रह्मतत्व होंगे वहां भक्ति की खुशबू आएगी।

पारस नहीं खदान का सोना बनो
‘मेरा अवगुण भरा, कहो ना कैसे तारोगे, कहीं मुष्टि से मारा है, कहीं दृष्टि से तारा है…’ भजन सुनाते हुए पूज्य नागरजी ने कहा कि एक लोहे के टुकडे़ को पारस छू ले तो वह सोना बन जाता है लेकिन 150 वर्ष बाद वह वापस लोहा हो जाता है। जबकि जो खदान से निकलता है, वह युगों तक सोना ही रहता है। सोना बनाया नहीं जाता।

हम खदानों में अच्छा पत्थर मिलने तक उसे खोजते रहते हैं। क्या कभी ईश्वर को भी इसी रूप में खोजा है। मेरे अंदर ईश्वर क्यों नहीं है, इसे खोजो।

आप खदान का सोना बन जाओगे। प्रत्येक खानदान में पांच तत्वों का अंश होता है- मातृ शुद्धि, पितृ शुद्धि, वंश शुद्धि, आत्म शुद्धि एवं अन्न शुद्धि। जिस परिवार में ये 5 शुद्धियां हैं, उसमें सपूत होंगे, कपूत नहीं।

श्रीमद् भागवत कथा 7 दिन में उबलते दूध की तरह विकार निकालकर जीवन सुधारती है और इसकी कृपा मंथन से निकले मावे की तरह मृत्यु सुधारती है।

कथा में बैठकर अपनी एक बुराई को ललकारो, वह इस तप से नष्ट हो जाएगी। अपनी बुराई से तीन घंटे भी घृणा हो जाए तो समझ लेना भला हो गया।

आज के 5 सूत्र-

  •  निंदा सुनने से दोष लगता है तो कथा सुनने से फल मिलता है।
  • निंदा, चोरी, मसखरी, ब्याज, घूस व परनार, जो चाहे दीदार तो ऐति वस्तु नकार।
  • अच्छे शब्द जब भी सुनो तो मन के विकार अवश्य निकालो।
  • घी शुद्ध है तो वह नहीं लिखेगा- 100 प्रतिशत शु़द्ध घी यहां मिलता है।
  • भक्ति की निरंतरता नहीं टूटे, वरना समय निकल जाएगा।