कोका कोला की विदाई के बाद थम्स-अप की एंट्री, पूरे हुए 40 साल

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नई दिल्ली। थम्सअप और लिम्का जो आज कोका कोला कंपनी के प्रोडक्ट हैं इन्हें कभी भारतीय कंपनी पार्ले ने शुरू किया था।

यह बात शायद आपके लिए चौंकाने वाली होगी कि 70 के दशक में एक समय ऐसा आया था जब देश की सरकार ने कोका कोला कंपनी के सामने ऐसी शर्त रख दी थी कि उसे भारत से अपना बिजनेस बंद करके जाना पड़ा।

कोका कोला की भारत से विदाई के साथ ही देश में थम्स-अप का जन्म हुआ था। अपनी इस स्पेशल रिपोर्ट में हम आपको बता रहे हैं कि क्यों 1977 में कोका कोला को देश छोड़कर जाना पड़ा?

कैसे लिम्पा, थम्सअप और गोल्ड स्पॉट जैसे प्रोडक्ट का जन्म हुआ? कब कोका कोला ने भारत में दोबारा एंट्री की और थम्स-अप, लिम्पा जैसे प्रोडक्ट को खरीद लिया।

कोका कोला की विदाई और थम्सअप का आईडिया: साल 1977 में देश से इमरजेंसी (आपातकाल) हटाए जाने के तुरंत बाद हुए चुनाव में जॉर्ज फर्नाडीज बिहार की मुजफ्फरनगर सीट से जीत गए। इस जीत के साथ ही उन्हें मोरार जी सरकार में केंद्रीय उद्योग मंत्री बना दिया गया।

बतौर केंद्रीय मंत्री अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने अमेरिका की मल्टी नेशनल कंपनी आईबीएम और कोका-कोला को भारत छोड़ने का फरमान जारी कर दिया। इन दोनों कंपनियों पर निवेश संबधी नियमों का उल्लंघन करने का आरोप लगा था।

सरकार ने यह शर्त रखी थी कि कोका कोला को भारत में संचालन के लिए अपनी 60 फीसद हिस्सेदारी किसी भारतीय कंपनी को देनी होगी, लेकिन कोका कोला ने इससे इनकार कर दिया और भारत से बाहर जाने का फैसला कर लिया।

कोका जाने से पहले देश में शीतल पेय का एक बड़ा बाजार तैयार कर चुका था, जिसके जाते ही भारतीय कंपनी पार्ले ने थम्सअप को फ्लैगशिप प्रोडक्ट के तौर पर लॉन्च कर दिया। इसका साथ दो और प्रोडक्ट लिम्का (लेमन) और गोल्ड स्पॉट (ऑरेंज) को भी लॉन्च किया।

कोका कोला की जमीन पर थम्सअप ने काटा मुनाफा: कोका-कोला शीतल पेय के लिहाज से भारत में एक अच्छा खासा बाजार तैयार कर चुकी थी। इस बाजार और इस बाजार के उपभोक्ताओं को भुनाने के लिए तीन लोगों ने एक नई कंपनी की नींव रखी।

पारले कंपनी के रमेश चौहान और प्रकाश चौहान (पारले बंधु) ने कंपनी के सीईओ भानु वकील के साथ मिलकर थम्स-अप के रुप में अपना फ्लैगशिप ड्रिंक लॉन्च किया।

थम्स-अप ने बेहद कम समय में बाजार में अपनी मोनोपॉली बना ली और मार्केट शेयर में भी इजाफा कर लिया। धीरे धीरे यह लोगों के बीच एक लोकप्रिय ब्रैंड बन गया।

यह उस वक्त के घरेलू ब्रैंड, कैंपा कोला, डबल सेवन, ड्यूक और यूनाइटेड ब्रुअरीज ग्रप का मैक्डॉवल क्रश को काफी पीछे छोड़ चुका था। 1980 तक यह लगातार प्रमुख विज्ञापनदाता बना रहा, हालांकि 80 के मध्य में इसे डबल कोला से जरूर थोड़ी बहुत प्रतिस्पर्धा मिली।

कोका कोला की दोबारा एंट्री: साल 1991 में जैसे ही भारत सरकार ने विदेशी कंपनियों के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था के दरवाजे खोले सबसे पहले पेप्सी ब्रैंड ने भारत में एंट्री मारी। इसके बाद पेप्सी और थम्स-अप के बीच एंडोर्समेंट्स के लिए तगड़ी प्रतिस्पर्धा देखने को मिलने लगी।

पेप्सी ने थम्स-अप को पछाड़ने के लिए जहां जूही चावला जैसे फिल्मी सितारे का सहारा लिया वहीं दूसरी तरफ थम्स-अप ने क्रिकेट में अपनी स्पांसरशिप बढ़ा दी।

थम्स-अप ने जल्द ही महाकोला नाम से 300 एमएल की नई बोतल भी बाजार में उतारी। महाकोला को छोटे कस्बों में तेजी से लोकप्रियता मिली। इसी बीच साल 1993 में एक बार फिर से कोका कोला ने इंडिया में एंट्री मारी।

जिससे मिला आइडिया उसी ने खरीद ली कंपनी: कोला कोला की एंट्री ने कोल्ड ड्रिंक्स मार्केट में प्रतिस्पर्धा को तिहरा कर दिया। कोका कोला, थम्सअप और पेप्सी तीनों एक दूसरे से मुकाबला कर रहे थे।

दिलचस्प बात यह है कि जिस कंपनी ने पारले को थम्स-अप की नीव रखने का आइडिया दिया था, पारले ने उसी कंपनी को थम्स-अप को 6 करोड़ अमेरिकी डॉलर में बेच दिया।