मार्केट केंद्रित एप्रोच से बढाएंगे किसानों की आय :शेखावत

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इंटरनेशनल एग्री कॉन्फ्रेंस : केद्रीय कृषि राज्य मंत्री ने कहा, लैब से नई टेक्नोलॉजी को बाहर लाकर किसानों की जमीन पर रूपांतरित करें, किसानों की मदद के लिए एक लाख छात्रों को एग्रीप्रिन्योर बनाएंगे।

अरविंद, कोटा। केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा कि खाद्यान्न उत्पादन में भारत दुनिया की अग्रिम पंक्ति में है। वैश्विक स्तर पर खेती में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। इसे देखते हुए देश के किसानों को मार्केट केंद्रित एप्रोच से तैयार किया जाएगा ताकि 2022 तक वे अपनी आय को दोगुना कर सकें।

बुधवार को कॅरिअर पॉइंट ऑडिटोरियम में दो दिवसीय इंटरनेशनल एग्रीकल्चर कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि किसान अनाज, फल, सब्जियों व अन्य उत्पादों में प्रोसेसिंग तकनीक को अपनाकर उनमें हाई वैल्यू पैदा करें। ताकि उन्हें उचित दाम मिल सकें।

उन्होंने कहा कि पिछले साल सभी खाद्यान्न में रिकॉर्ड उत्पादन हुआ, दूध के उत्पादन में हम सबसे अव्वल हैं। देश में एक ओर हरित क्रांति को नकारते हुए उन्होंने जोर दिया कि हमें ग्लोबल एप्रोच से मार्केट पर फोकस करना है। हाल ही में दिल्ली में हुई ‘वर्ल्ड फूड इंडिया’ में 60 देशों के प्रतिनिधी शामिल हुए।

केद्रीय कृषि मंत्रालय ने इसमें 1.24 लाख करोड़ रूपए की विभिन्न प्रोसेसिंग यूनिटें लगाने के लिए एमओयू किए। ट्रांसफार्मेशन से ही एग्रीकल्चर में नई क्रांति लाई जा सकती है।

इंटरनेशनल एग्रीकल्चर कॉन्फ्रेंस में उपस्थित उद्यमी, छात्र एवं अतिथि।

उन्होने कहा कि अगले तीन माह में वे देश की 103 एग्रो इंडस्ट्रीज में जाकर टेक्नोलॉजी व रिसर्च को लैब से लैंड पर पहुंचाने का प्रयास करेंगे। आज भी देश की 40 प्रतिशत कृषि योग्य भूमि पर केवल गेंहू व चांवल की खेती होती है।

जहां जलवायु गेंहू के अनुकूल नहीं है, वहां भी गेंहू की खेती होती है। बल्कि जिस क्षेत्र में व्यक्ति जो खाता है, उस खाद्यान्न की पैदावार हो। हमें नेचुरल रिसोर्सेस को पहचानकर उनका सही उपयोग करना होगा।

उन्होंने कहा कि राज्य में मुख्यमंत्री ने ओलिव की पत्तियों से चाय का प्रोजेक्ट शुरू कराया। यह चाय 52 रू किग्रा बिक रही है। इसमें 12 तरह के कैंसर से लड़ने की क्षमता है।

महाराष्ट्र के एक गांव में अनार की पैदावार से 250 करोड़ रू. का निर्यात हो रहा है। सी-फूड में भारत से 36000 करोड़ का झींगा एक्सपोर्ट होता है। ये 600 रू. किलो बिकता है।

फसलों में वैल्यू एडिशन व तकनीक अपनाएं
शेखावत ने कहा कि उन्होंने लिंकडिन के फाउंडर से चर्चा की कि भारत में ढाई लाख स्टूडेंट्स एग्रीकल्चर कोर्सेस कर रहे हैं।

मंत्रालय इनमें से 1 लाख को कनेक्ट कर उनकी वर्कफोर्स तैयार करेगा, ताकि ये छात्र 1 घंटा रोज या सप्ताह में तीन दिन किसानो के बीच जाकर उन्हें वैल्यू एडिशन व तकनीक ट्रांसफर कर सकें।

इससे 2022 तक नए भारत की परिकल्पना साकार दिखाई देगी। उन्होंने कहा कि कॅरिअर पॉइंट यूनिवर्सिटी भी एग्रीकल्चर छात्रों को एग्रीप्रिन्योर बनाने की शुरूआत करे।

उन्होंने कहा कि कोटा-बूंदी के सांसद ओम बिरला का सहकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान रहा, उनके क्षेत्र से इसकी शुरूआत की जाए। हमारी एप्रोच ग्राहकों पर केंद्रित न होकर किसानों पर केंद्रित होगी।

सांसद ओम बिरला ने कहा कि सीपी यूनवर्सिटी के एग्रीकल्चर छात्र कोटा जिले की 153 पंचायतों में 3-3 की टीमें बनाकर अपने रिसर्च को किसानों तक पहुंचाए। हमें कृषि वैज्ञानिकों को ऐसे गांवों के मॉडल दिखाएंगे।

हाडौती में 60 फीसदी सिंचित कृषि भूमि है। प्रधानमंत्री का लक्ष्य है कि हम 100 प्रतिशत भूमि को बूंद-बूंद सिस्टम से सिंचित करेंगे। आज रोग लगते ही किसान फसलों पर कीटनाशक छिडकते हैं, जिससे उन्हें लाखों रूपए का नुकसान हो रहा है।

बॉस्केटबाल का मक्का रहा कोटा
केंद्रीय मंत्री शेखावत ने कहा कि देश-विदेश में खेती पर कई वर्ष ग्राउंड वर्क करने से मैं किसानों के दर्द को महसूस करता हूं। 2 माह पहले कृषि व कृषक कल्याण मंत्रालय संभाला है।

यहां आकर एग्रीकल्चर साइंस के छात्रों से मिलकर खुशी हुई। ये हमारे रिर्सोस हैं। वर्षो पहले कोटा बास्केटबॉल का मक्का रहा, यहां आकर बॉस्केटबॉल खेला। माता-पिता भी यहां रहे।

विधायक हीरालाल नागर ने कहा कि हाड़ौती में लहसुन की बम्पर फसल होती है, लेकिन किसान उसका स्टोरेज नहीं कर पाते हैं इसलिए केंद्र सरकार यहां लहसुन के संधारण व संरक्षण का एक प्रोजेक्ट खोले।

इस पर कृषि मंत्री ने कहा कि यहां ऐसे एग्रीप्रिन्योर तैयार करें जो किसानों को लहसुन को डिहाइड्रेट करना सिखा दें। लहसुन खराब होने से बच जाएगा।

‘प्रति लीटर पैदावार कितनी’ यह स्केल हो
दो दिवसीय एग्रीकल्चर कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन समारोह में कोटा यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ.पीके दशोरा ने कहा कि खेती में वैज्ञानिक सोच लाएं। पैदावार नापने का पैमाना प्रति हेक्टेयर की बजाय ‘प्रति लीटर पैदावार कितनी’ होना चाहिए।

केद्र व राज्य सरकार ने किसानों को ‘मृदा कार्ड’ देना प्रारंभ किया, जिससे किसानों को मिट्टी, पानी, बीज व पोस्ट हार्वेस्टिंग तकनीक के बारे में पूर्वानुमान हो जाता है। कोटा यूनिवर्सिटी ने डूंगरज्या गांव को गोद लेकर रिसर्च किया।

वहां पानी के भराव से मिट्टी का क्षरण हो रहा है। 15 से 20 फीसदी फसलें वाटर हार्वेस्टिंग से बर्बाद हो रही है। वैकल्पिक पैदावार शुरू हों। सरकार वेयरहाउस पर भी ज्यादा ध्यान दे।

आईसीएआर, बारामती के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. अजयकुमार सिंह, जल संरक्षण के वैज्ञानिक डॉ.आर के सिंह, तथा पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के डॉ. डीके ग्रोवर ने जलवायु परिवर्तन, पैदावार, टेक्नोलॉजी व खाद्य सुरक्षा पर विचार व्यक्त किए।

पीएयू, लुधियाना की प्रो.किरण ग्रोवर ने कहा कि भारत जीएचआई इंडेक्स में 119 देशों की सूची में 100वें स्थान पर है। प्रति 1000 में से 29 बच्चे एक वर्ष तक जीवित नहीं रहते। खेत से प्लेट तक हमें घातक केमिकल्स रोककर फूड क्वालिटी में सुधार करने होंगे।

इससे पूर्व सीपी यूनिवर्सिटी के चांसलर प्रमोद माहेश्वरी, कॅरिअर पॉइंट के निदेशक ओम माहेश्वरी, कुलपति प्रो.डीएन राव, डीन डॉ एसएस तोमर व एकेडमिक डायरेक्टर डॉ.गुरुदत्त कक्कड़ ने अतिथियों का स्वागत किया।

समारोह में विधायक संदीप शर्मा, चंद्रकांता मेघवाल, नेपाल के संग्राम के.लेंका, नाइजीरिया के प्रतिनिधि, कृषि वैज्ञानिक, शोधकर्ता, किसान एवं सीपीयू के एग्रीकल्चर छात्र मौजूद रहे।