थोक फल, सब्जी मंडी प्याऊ : श्रमिकों के भुगतान में 3.50 लाख का घोटाला

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कोटा। एरोड्रम चौराहे के पास स्थित थोक फल सब्जी मंडी में प्याऊ के श्रमिक लगाने को लेकर हुई वित्तीय अनियमितता के लिए सचिव हेमलता मीणा को दोषी माना गया है। 11 कर्मचारियों के नाम से भुगतान उठाकर साढ़े तीन लाख रुपए का घोटाला किया गया है।

उनके खिलाफ हुई जांच को कार्रवाई के लिए निदेशालय को भेजा गया है। इस बारे में सचिव से संपर्क किया लेकिन, उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।

विभाग से मिली जानकारी के अनुसार फल सब्जी मंडी में प्याऊ के लिए 11 श्रमिकों का ठेका दिया गया। जबकि यहां केवल तीन ही प्याऊ संचालित हो रही हैं। ठेकेदार ने सचिव से मिलकर यह खेल खेला।

इसमें 11 श्रमिकों को प्याऊ पर लगाना दिखाया गया, जबकि वे ठेकेदार के ही रिश्तेदार थे। जो व्यक्ति प्याऊ पर काम कर रहे थे, उनके नाम इसमें शामिल ही नहीं था। इस प्रकार लाखों का खेल चल रहा। इसकी शिकायत हुई तो कृषि विपणन विभाग के क्षेत्रीय संयुक्त निदेशक हरिशरण मिश्रा को इसकी जांच सौंपी गई।

शिकायत के आधार पर जांच
इसमें साढ़े तीन लाख की वित्तीय अनियमितताएं मिली है। जिसके लिए सचिव हेमलता मीणा जिम्मेदार हैं। उनके खिलाफ प्रभावी कार्रवाई के लिए निदेशालय को लिखा गया है।
-हरिशरण मिश्रा, क्षेत्रीय संयुक्त निदेशक 

पैसा भी दिया जा रहा है कम : जांच में सामने आया कि श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दी जा रही है। यह 207 रुपए रोज है। इसमें 13.15 प्रतिशत पीएफ 4.75 प्रतिशत ईएसआई की कटौती भी शामिल है। जो तीन श्रमिक वहां काम कर रहे हैं, उन्हें केवल 4 हजार रुपए माह दिया जा रहा है।

पीएफ जमा, ईएसआई : जांच में पाया गया कि जिन 11 श्रमिकों को प्याऊ पर काम करना बताकर भुगतान उठाया जा रहा था, वे तो वहां काम ही नहीं करते थे। जांच अधिकारी ने स्वयं निरीक्षण किया तो यहां पर केवल तीन ही प्याऊ मिली, इनमें जो कर्मचारी काम कर रहे थे, वे पिछले पांच साल से थे।

लेकिन, ठेकेदार ने अपनी सूची में उनके नाम शामिल नहीं किए हुए थे, जिससे उनका तो पीएफ काटा जा रहा था, ईएसआई की सुविधा दी जा रही है। काम कर रहे श्रमिकों ने बताया कि वे ही पिछले पांच साल से काम कर रहे हैं। कोई दूसरा इसमें है नहीं। जिन 11 के नाम दिए गए हैं उनके नाम भी पीएफ ईएसआई की सुविधा नहीं है।

बिलों को वेरीफाई नहीं कराया
11कर्मचारियों के नाम से भुगतान उठाकर साढ़े तीन लाख रुपए का घोटाला किया गया है। इस सबके लिए सचिव को जिम्मेदार माना गया है। ठेकेदार के बिलों को प्रभारी कर्मचारी से वेरीफाई तक नहीं करवाया और सचिव ने उसका सीधा भुगतान करवा दिया। जिससे उन्हें इसमें दोषी माना गया है।