बैंकों की मनमानी से ग्राहकों को मिलेगी राहत, ब्याज दरों में कटौती का होगा फायदा

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कुछ बैंक तो अपने कार्यालय के किराये, कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी पर होने वाले खर्च को भी कर्ज की दर तय करने के फॉर्मूले में शामिल कर लेते हैं

नई दिल्ली। ब्याज दरों में बैंकों की मनमानी से शायद ग्राहकों को राहत मिल सकती है। आरबीआइ बैंकों की इस आदत पर लगाम लगाने का मन बना चुका है। केंद्रीय बैंक की तरफ से इस बारे में किये गये आंतरिक अध्ययन में बैंकों के स्तर पर कई तरह की गड़बड़ियों का पता चला है।

इस अध्ययन के आधार पर आरबीआइ जल्द ही ऐसी व्यवस्था करने जा रहा है जिससे बैंकों के लिए कर्ज की दरों को ज्यादा पारदर्शी तरीके से तय करना होगा।

आरबीआइ के दो पूर्व गर्वनर डी. सुब्बाराव व रघुराम राजन और मौजूदा गर्वनर उर्जित पटेल ब्याज दरों में कटौती का पूरा फायदा ग्राहकों को नहीं देने पर बैंकों को फटकार लगा चुके हैं।

आरबीआइ जब भी मौद्रिक नीति के तहत रेपो रेट में कटौती कर बैंकों को सस्ती दर पर कर्ज देने का मौका देता है तो बैंक उसका पूरा फायदा ग्राहकों को नहीं देते हैं।

आरबीआइ ने यह अध्ययन रिपोर्ट बुधवार को सार्वजनिक की है। वैसे तो इस पर अभी विचार विमर्श हो रहा है लेकिन इस बात के पूरे संकेत है कि कर्ज की दरों को तय करने में बैंकों का मनमाना रवैया अब नहीं चलेगा।

मसलन, अभी फ्लोटिंग दर को बैंक साल में एक बार निर्धारित करते हैं लेकिन रिपोर्ट में इसे हर तिमाही तय करने की सिफारिश की गई है। इसका मतलब यह हुआ कि अगर रेपो रेट में कटौती की जाती है तो उसका फायदा ग्राहकों को जल्दी मिलने का रास्ता साफ हो जाएगा।

रिजर्व बैंक रेपो रेट पर ही बैंको की अल्पकालिक जमा पर ब्याज देता है। रिपोर्ट में यह भी संकेत दिया गया है कि बैंकों के लिए कर्ज की दरों को तय करने का नया फॉर्मूला अगले वर्ष से लागू होगा।

इसमें सभी बैंकिंग ग्राहकों को यह मौका मिलेगा कि वह नई व्यवस्था के तहत तय ब्याज दर पर अपने बकाये कर्ज का भुगतान करे। इसके लिए ग्राहकों से कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जाएगा।

वैसे इस रिपोर्ट के आधार पर नई व्यवस्था तो लागू हो जाएगी लेकिन अभी जिस तरह से बैंक कर्ज की दरों को तय करते हैं उसको लेकर इसमें कई खुलासे हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों के स्तर पर कर्ज की दरों को तय करने में कई तरह की अनियमितताएं बरती जा रही हैं।

कुछ बैंक तो अपने कार्यालय के किराये, कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी पर होने वाले खर्च को भी कर्ज की दर तय करने के फॉर्मूले में शामिल कर लेते हैं। 

एक बैंक का बगैर नाम लिये इसमें कहा गया है कि विगत छह महीने में इसकी जमा लागत में 0.40 फीसद की कमी हुई लेकिन उसका कोई फायदा ग्राहकों को नहीं दिया गया।

मोटे तौर पर जनवरी, 2015 के बाद से अभी तक रेपो रेट में दो फीसद की कटौती हो चुकी है लेकिन बैंकों की तरफ से कर्ज की दरों में बमुश्किल 0.75 फीसद की कटौती की गई है।