छात्र दिग्विजय ने पाई असाध्य बीमारी पर विजय

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जज्बे की जीत: अपनी लाइलाज बीमारी से लड़ते हुए छात्र दिग्विजय ने दिमागी स्पर्धाओं से विजय हासिल की, ‘मैं हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगां…’ वाजपेयी की इन पंक्तियों को आत्मसात कर वह हर मुश्किल पार कर रहा है।

अरविंद, कोटा। ‘सभी शक्ति तुम्हारे भीतर है, तुम कुछ भी और सब कुछ कर सकते हो..’ यह जज्बा लिए असाध्य बीमारी से जूझ रहा 17 वर्षीय दिग्विजय हर मुश्किल पार कर रहा है। उसने बताया कि क्लास-8 से गंभीर बीमारी के बारे में सोचता, तो वहीं ठहर जाता।

पापा डाॅ.धुर्वो राय एवं मां डाॅ.गिरिजा आर.वारियर दोनों रेडियोलाॅजिस्ट हैं, इसलिए बीमारी को उन पर छोड़ दिया। नाना रामचंद्र व नानी माधवी दोनों उसकी हिम्मत बढाते रहे। माॅडर्न फिजिक्स में रिसर्च के लिए इस वर्ष वह जेईई-एडवांस्ड के साथ वल्र्ड क्लास यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेकर पार्टिकल फिजिक्स में रिसर्च करना चाहता है।

बीमारी से परे उसकी नजरें लक्ष्य पर टिकी है। उसके मेंटर नुक्लियस एजुकेशन के निदेशक विशाल जोशी ने बताया कि डिस्टेंस लर्निंग छात्र दिग्विजय को कोलकाता जाकर कोचिंग व कॅरिअर गाइडेंस देते रहेंगे। साइंटिस्ट बनने के लिए वह असाध्य बीमारी को दिमागी मेहनत से हराना चाहता है।
क्रोन्स डिजीज से पीड़ित

मां डाॅ.गिरिजा आर.वारियर ने बताया कि दिग्विजय (17) आॅटोइम्यून बीमारी (क्रोन्स डिजीज) से पीड़ित है। शरीर में अल्सर या सर्जिकल समस्याएं होने पर वह इम्यून सिस्टम पर अटैक करता है। यहां तक कि बाॅनमेरो की मांसपेशिया सिकुड़ने लगती है। लीवर डेमेज होने की संभावना रहती है।

उसे नियंत्रित भोजन में घर पर चावल से बनी वस्तुएं देते हैं। बाहर निकलने पर मास्क पहनता है। भीड़ भरे क्षेत्रों से उसे दूर रखा जाता है। पेट की नलियां अवरूद्ध होने से वह कई दिनों तक अस्पताल में भर्ती रहा, उसी दौरान पढ़ाई करते हुए नेशनल लेवल पर सफल रहा। क्लास-10 में अस्पताल में भर्ती रहते हुए वह एनटीएसई स्काॅलर बना।

हर हफ्ते ब्लड टेस्ट, फिर भी अव्वल
उसने गंभीर बीमारी की चुनौती को स्वीकार किया और उससे निरंतर लड़ना सीख लिया। हर हफ्ते ब्लड टेस्ट करवाना, डाॅक्टर्स व हाॅस्पिटल के चक्कर काटना उसकी नियति बन गई। इसके बावजूद क्लास-10 तक दिल्ली पब्लिक स्कूल टाॅपर रहा। आरएमओ, एनटीएसई से उत्साह बढ़ा तो कक्षा-11 में केवीपीवाय में नेशनल रैंक-113 प्राप्त की।

वह जेबीएनएसटीएस स्काॅलर भी बना। दिग्विजय ने कहा कि कोटा स्टडी हब है, जहां स्टूडेंट्स की फाइनल ब्रशिंग होती है। जेईई-एडवांस्ड के लिए नुक्लियस एजुकेशन से प्राॅब्लम साॅल्विंग एप्रोच एवं स्पेशल मैथड मिले। इंटरनेट पर वह साइंस जर्नल पढता है। पहले मैथ्स में रूचि रही लेकिन उसमें एप्लीकेशन कम होने से उसने फिजिक्स में रिसर्च करने की ठान ली।

स्काॅलरशिप से गरीब बच्चों को पढ़ाता है
पढ़ाई के साथ उसने विशारद स्तर तक क्लासिकल वायलिन व कीबोर्ड बजाया। इतना ही नहीं, पेंटिंग व फाइन आर्ट में उसने चित्र विशारद की उपाधि ली। लाॅन टेनिस खेलने के शौकीन दिग्विजय अमेचर फोटोग्राफर भी हैं। एक एनजीओ से जुड़कर बस्ती के गरीब बच्चों को पढ़ाने लगा।

अपने पुरस्कार व स्काॅलरशिप की राशि बच्चों की एजुकेशन पर खर्च कर दी। गौतम बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, स्टीफन हाॅकिन्स व डाॅ.एपीजे अब्दुल कलाम उसके आदर्श हैं।

कमजोरी को खुद से जीतने की छूट मत दो
दिग्विजय कहता है, अपनी कमजोरी को खुद से जीतने की छूट मत दो। एक योद्धा की तरह बहादुरी से सामना करो और मुसीबतों से बाहर निकलना सीखो। अपना डर ईश्वर को सौंप दो, वह आपकी किस्मत तय करेगा।

अपनी सीमाओं को स्वीकार करो क्यांेकि दुनिया में हर चीज आपके लिए नहीं, लेकिन जिसके लिए आप हो, उसे अवसर खत्म होने से पहले अर्जित करो। रोज 2 घंटे जप कर वह मन को स्थिर रखता है।