जूलर्स ने केवाईसी का भी निकाला तोड़, काट रहे कई बिल

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कई जूलर गहनों की बिक्री को सेल्स बुक में न दिखाकर उसे पुराने सोने के बदले बनवाई के तौर पर दिखा रहे हैं, इससे ग्राहक इनकम टैक्स के चक्कर में फंसने की टेंशन से निजात पा रहे हैं, वहीं जूलर्स भी जीएसटी बचा रहे हैं

नई दिल्ली। 50 हजार रुपये से ज्यादा कीमत के गहनों की खरीद-बिक्री पर मनी लॉन्ड्रिंग निरोधक कानून (पीएमएलए) के तहत केवाईसी अनिवार्य होने के बाद जहां गहनों की बिक्री में काफी गिरावट की शिकायतें आ रही हैं, वहीं कई जूलर्स ने पीक फेस्टिव डिमांड के बीच इसका भी तोड़ निकाल लिया है। वे एक ही खरीद पर ग्राहक को छोटी-छोटी रकम के दो या ज्यादा बिल काट रहे हैं।

कई जूलर ग्राहक की सहमति से गहनों की बिक्री को सेल्स बुक में न दिखाकर उसे पुराने सोने के बदले बनवाई के तौर पर दिखा रहे हैं। इससे जहां ग्राहक इनकम टैक्स के चक्कर में फंसने की टेंशन से निजात पा रहे हैं, वहीं जूलर्स भी जीएसटी बचा रहे हैं।

चांदनी चौक के एक बुलियन डीलर ने बताया, ‘अब जो कुछ हो रहा है, उससे सिर्फ सरकार को ही घाटा होगा। सोने जैसी हाई वैल्यू कमोडिटी के लिए 50,000 की रकम कुछ भी नहीं होती। त्योहारी डिमांड के बीच कोई जूलर ग्राहक छोड़ना नहीं चाहता, भले ही थोड़ा जोखिम क्यों न उठाना पड़े।’

अब तक ग्राहक को 2 लाख से ज्यादा की खरीद पर पैन देना होता था, लेकिन अब 50 हजार रुपये से ऊपर सरकारी पहचान पत्र देना होता है। इससे बड़े पैमाने पर कैश में सोना खरीदने वाले आगे नहीं आ रहे।

डीलर ने बताया, ‘मान लीजिए आपने 30 ग्राम (करीब 95000 रुपये) की गोल्ड चेन खरीदी या पत्नी के लिए 50 ग्राम (करीब 1.6 लाख) के दो जोड़ी कंगन लिए।

अब आप दोनों ही चीजों में केवाईसी देने को बाध्य हैं, लेकिन नहीं देना चाहते। ऐसे में मैं चेन के लिए 48,000 और 47,000 के दो बिल काट दूंगा या कंगन के लिए चार बिल जारी करूंगा। आप भी खुश और मैं भी।’

एक अन्य तरीका के तहत कई ट्रेडर ग्राहक से पैसे तो पूरा ले रहे हैं, लेकिन बिल में दिखा रहे हैं कि ग्राहक ने पुराने गहने के बदले नए गहने बनवाए हैं। दो-चार लाख रुपये के गहने पर भी मेकिंग चार्ज या नए-पुराने का मार्जिन 50 हजार रुपये की लिमिट को पार नहीं करता।

ऐसे में जूलर मामूली मेकिंग चार्ज पर 18 पर्सेंट जीएसटी देकर वास्तविक सेल्स पर 3 पर्सेंट जीएसटी देने से भी बच जाता है और ग्राहक भी इनकम टैक्स की नजर में बड़ा खर्च नहीं आने देता। कई जूलर्स ने तो फिलहाल बिल देना ही बंद कर दिया है।

ईमानदारी से व्यापार करने वाले जूलर इस नियम को लेकर काफी नाराज हैं। उनका कहना है कि आम तौर पर घरेलू महिलाएं भी 50 हजार रुपये से ज्यादा की जूलरी खरीदने आती हैं। उनके पास पैन नहीं होता और उनसे फॉर्म-60 भरवाना पड़ता है। इसमें समय खराब होता है और कई बार ग्राहक ही इस झमेले में नहीं पड़ना चाहता।