ब्याज में कटौती का पूरा फायदा ग्राहकों को नहीं मिलता – आरबीआई

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नई दिल्ली। ब्याज दरों में कटौती होती है या नहीं इसका फैसला तो भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल बुधवार को कर ही देंगे लेकिन अब यह तय है कि केंद्रीय बैंक के रेपो रेट में जितनी कटौती करेगा उसका पूरा फायदा आम जनता को सस्ते कर्ज के रूप में मिलने लगेगा।

आरबीआइ इस बात से खासा नाराज है कि कई बार चेतावनी देने के बावजूद कर्ज की दरों को तय करने को लेकर बैंक बहुत पारदर्शी तरीका नहीं अपना रहे हैं। रेपो रेट में जितनी कटौती आरबीआइ करता है उसका पूरा फायदा बैंक ग्राहकों को नहीं देते हैं।

बैंकों की तरफ से कर्ज की दर तय करने के तरीके में बदलाव की घोषणा मौद्रिक नीति की समीक्षा के साथ केंद्रीय बैंक बुधवार को कर सकता है। कर्ज की दरों को तय करने का मौजूदा तरीका (मार्जिनल कॉस्ट आफ फंड बेस्ड रेट्स-एमसीएलआर) अप्रैल, 2016 से लागू किया गया है लेकिन आरबीआइ इससे संतुष्ट नहीं है।

एमसीएलआर के तहत बैंक जो दर तय करते हैं उससे कम दर पर वे अमूमन कर्ज नहीं देते। इसकी समीक्षा के लिए आरबीआइ ने एक आंतरिक समिति गठित की थी। समिति ने अपनी रिपोर्ट पिछले हफ्ते ही सौंपी है।

समिति की सिफारिशों के आधार पर ही अब केंद्रीय बैंक कर्ज की दर तय करने का नया तरीका बैंकों के लिए बनाएगा जिसके बारे में माना जा रहा है कि वह ज्यादा पारदर्शी होगा।

अगस्त, 2017 की मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करते हुए आरबीआइ गवर्नर ने कहा था कि ऐसी व्यवस्था करनी जरूरी है कि आरबीआइ की तरफ से की जा रही कटौती का सीधा असर कर्ज की दरों पर पड़े। अगर ऐसा नहीं होता है तो अर्थव्यवस्था पर ब्याज दरों के असर की सही समीक्षा नहीं हो सकती है।

बैंकिंग सूत्रों के मुताबिक मौजूदा गवर्नर पटेल के अलावा पूर्व गवर्नर डा. रघुराम राजन भी कई बार इस बात पर चिंता जता चुके हैं कि वह बैंकों को ब्याज दरों में जितनी कटौती का अवसर देते हैं उतना फायदा ग्राहकों को नहीं मिलता।

उदाहरण के तौर पर जनवरी, 2015 के बाद से रेपो रेट में 200 आधार अंकों (दो फीसद) की कटौती हुई लेकिन बैंकों की तरफ से कर्ज की दरों में बमुश्किल 90 आधार अंकों (0.90 फीसद) या 100 अंकों (एक फीसद) की कटौती की गई।

उधर, मौद्रिक नीति की समीक्षा से ठीक पहले उद्योग जगत की तफ से ब्याज दरों में भारी भरकम कटौती की मांग आ रही है। प्रमुख उद्योग चैंबर सीआइआइ ने कहा है कि अर्थव्यवस्था की स्थिति को देखते हुए रेपो रेट में 100 आधार अंकों यानी एक फीसद की कटौती होनी चाहिए।

सीआइआइ का कहना है कि अभी बिल्कुल नई सोच की जरूरत है। निजी निवेश बिल्कुल ठप है और कर्ज को सस्ता करने से निवेश में तेजी लाई जा सकती है। हालांकि बैंकिंग उद्योग में इस बात की लगभग आम राय है कि ब्याज दरों को अभी मौजूदा स्तर पर ही बनाये रखा जाएगा।

इसके पीछे महंगाई की दर को वजह बताया जा रहा है जिसमें थोड़ी वृद्धि हुई है। अन्य जानकार भी मान रहे हैं कि ब्याज दरों में कटौती तो होगी लेकिन शायद इस बार न हो। इसके लिए दिसंबर, 2017 की समीक्षा का इंतजार करना पड़ सकता है।